अल्मोड़ा के शेरदा 'अनपढ़' कभी स्कूल नहीं गए लेकिन ऐसा लिख गए कि...



अल्मोड़ा. उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा को बुद्धिजीवियों का शहर कहा जाता है. ऐसे कई महान लेखक और कवि रहे हैं, जिनकी यह शहर जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है. आज हम आपको ऐसे महान लेखक और कवि के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी लिखी कुमाऊंनी कविताओं से सभी को हैरान किया था. इस शख्सियत का नाम है शेरदा ‘अनपढ़’. उनका जन्म 3 अक्टूबर 1933 को अल्मोड़ा के माल गांव में हुआ था. शेरदा का कुमाऊंनी कविताओं के विकास में अहम योगदान रहा है. इसको देखते हो उनके गांव में पहली बार कुमाऊंनी कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जोकि उनकी स्मृति में रखा गया. इसमें अल्मोड़ा के कई कुमाऊंनी कवियों ने हिस्सा लिया. शेरदा ने 300 से ज्यादा कुमाऊंनी कविताएं लिखी थीं. उनकी लिखी कई कुमाऊंनी कविताओं को डिग्री कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है. उन्होंने कुमाऊंनी भाषा में 6 किताबें भी लिखी थीं.

कुमाऊं विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर रहे देव सिंह पोखरिया ने लोकल 18 से कहा कि शेर सिंह बिष्ट को अनपढ़ के नाम से जाना जाता है. अनपढ़ नाम इतना बड़ा है कि आज उन्हें इसी नाम से जाना जाता है. कुमाऊंनी साहित्य विकास की यात्रा में उनका अहम योगदान रहा है. शेरदा अनपढ़ जब हास्य कविताओं को कहते थे, तो ऐसा लगता था कि उनके द्वारा बोली गई बात शायद कोई और बोल ही नहीं सकता. कभी वह हंसाया करते थे, तो कभी उन्हें सुन आंसू आ जाया करते थे. अपना सादगी भरा जीवन उन्होंने कुमाऊंनी कविताओं और रचनाओं पर ही न्योछावर कर दिया था.

शेरदा के साथ साझा किया था मंच
अल्मोड़ा के वरिष्ठ रंगकर्मी त्रिभुवन गिरी महाराज ने लोकल 18 से कहा कि उन्होंने शेरदा अनपढ़ को बचपन से ही देखा था. उनके साथ कई बार मंच भी साझा किया. वह उनके साथ बागेश्वर, हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत और पिथौरागढ़ जाया करते थे. उनके जैसा महान और सरल व्यक्ति उन्होंने अपनी जिंदगी में शायद ही देखा हो. वह अपनी कुमाऊंनी कविताओं से हर किसी को मोहित कर देते थे, जिसे लोग आज भी पढ़कर याद करते हैं. शेरदा के लिखे हुए एक-एक शब्द को देखकर वह बहुत सोचते हैं कि वह कैसे इनको लिख गए. शेरदा अनपढ़ सच में एक महान विभूति हैं.

कभी स्कूल नहीं गए शेरदा
शेरदा अनपढ़ कभी स्कूल नहीं गए. जब वह छोटे थे, तब अल्मोड़ा में उन्होंने एक शिक्षिका के घर में नौकरी की थी. शिक्षिका ने उन्हें मौखिक शिक्षा दी. कुछ समय के बाद वह फौज में भर्ती हो गए, जहां से उन्होंने थोड़ी बहुत शिक्षा ग्रहण की. कविताओं के अलावा उन्होंने 6 कुमाऊंनी भाषा में किताब भी लिखी थी. इनके नाम हैं- जाँठिक् घुडुर्, ये कहानी है नेफा और लद्दाख की, शेरदा समग्र, फचैक के बहाने, दीदि-बैंणि और मेरि लटि-पटि. 20 मई 2012 को शेरदा ने अंतिम सांस ली.

शेरदा की कविताओं से कुछ न कुछ नया सीखें
कुमाऊंनी कवि सम्मेलन के आयोजक राहुल अधिकारी ने कहा कि माल गांव में जन्मे शेरदा अनपढ़ की स्मृति में पहली बार कुमाऊंनी कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें अल्मोड़ा के वरिष्ठ कुमाऊंनी कवियों ने शिरकत की. इसका मकसद था कि शेरदा को लोग करीब से जानें और उनकी कविताओं को पढ़कर वह कुछ न कुछ नया सीखें. उनके द्वारा लिखी गई कविताओं को लोग आज भी महसूस करते हैं.

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