उत्तराखंड के इस टीचर ने लगाए 1 लाख पेड़, सूखे पड़े कई नदियों को किया जीवित


अरशद खान/देहरादून: आमतौर पर किसी स्कूल शिक्षक की दिनचर्या घर से स्कूल आने-जाने तक सीमित रहती है, लेकिन अल्मोड़ा के सुरईखेत में स्थित आदर्श इंटर कॉलेज के रसायन शास्त्र के शिक्षक मोहन चंद्र कांडपाल ने ऐसी मिसाल पेश की है, जो अपवाद है. पर्यावरण एवं चेतना के अभियान में जुटे मोहन चंद्र कांडपाल का अभियान द्वाराहाट और भिकियासैंण विकास खंडों के लगभग 50 गांवों में फैल चुका है. शुरुआती दौर में उन्होंने यह काम साथी अध्यापकों, स्थानीय दुकानदारों के चंदे से किया. पर्यावरण सुधार के इस अभियान को स्कूल से बाहर गांव तक ले जाने के साथ ही रचनात्मक कार्यों को बढ़ाने के लिए अधिक संसाधनों और मार्गदर्शन की जरूरत पड़ी तो उन्होंने ‘उत्तराखंड सेवा निधि, अल्मोड़ा’ से संपर्क साधा. इसके साथ ही समान सोच वाले अन्य स्थानीय लोगों को जोड़कर ‘पर्यावरण शिक्षण एवं ग्रामोत्थान समिति’ (सीड) के नाम से एक संस्था बनाई.

Local 18 से बातचीत में ‘पर्यावरण वाले मास्साब’ के नाम से मशहूर मोहन चंद्र कांडपाल ने बताया कि- उत्तराखंड में 6000 से ज्यादा छोटी-बड़ी नदियां हैं, जिसमें से ज्यादातर नदियां या तो मर चुकी हैं या बरसाती हो गई हैं, या सूख रही हैं या जिनके हालात खराब हैं या बुरी तरह बीमार हैं. आपदा अब उत्तराखंड की नियति बनती जा रही है. भूस्खलन, नदियों में अवैध अतिक्रमण, एक्सट्रीम वेदर कंडीशन और जलवायु परिवर्तन के नए संकेत साफ-साफ दिखाई पड़ रहे हैं. देहरादून के शहर के अंदर 23 से ज्यादा नदियां हैं, लेकिन कोई भी अब सदानीरा नहीं रही है. ज्यादातर अब केवल बरसाती हो गई हैं और मल-मूत्र ढोने वाली हो गई हैं. जिसको लेकर उनके द्वारा उत्तराखंड में नदियों के उत्थान के लिए युद्ध स्तर पर कार्य किया जा रहा है. मोहन चंद्र कांडपाल ने बताया कि- उन्होंने अपने क्षेत्र में रसका नदी पर काम किया, नतीजतन आज नदी में पानी धारा कल-कल करती बह रही है.

कौन हैं पर्यावरण वाले मास्साब ?
पर्यावरण को बचाने का ऐसा जज्बा शायद किसी व्यक्ति में आपको देखने को मिलेगा जैसा कि- पर्यावरण वाले मास्साब में है. पहले अपने विद्यार्थियों की मदद से एक लाख से अधिक पेड़ लगाए और अब उत्तराखंड में नौलों और धारों को जीवंत करने का काम कर रहे हैं. ‘पर्यावरण वाले मास्साब’ के नाम से मशहूर मोहन चन्द्र कांडपाल उत्तराखंड सुरईखेत गांव के इंटर कालेज में पढ़ाते हैं. उनके पिता बैंक के कर्मचारी थे, इसलिए मोहन मास्साब का बचपन शहरों में बीता. कानपुर से उन्होंने रसायन शास्त्र में एमएससी की परीक्षा पास की. उस समय तक उनके जैसे पढ़े-लिखे लोग गांवों से दूर भागते थे, लेकिन मोहन मास्साब अपने गांव ‘कांडे’ लौट आए. क्यों? क्योंकि एक दिन उन्होंने आकाशवाणी पर एक रेडियो नाटक सुना, जिसमें उनके जैसे पढ़े-लिखे युवकों से कहा जा रहा था कि शहरों में मोटी तनख्वाह की नौकरी करने और अपने स्वार्थ में डूबे रहने से कहीं अच्छा है कि युवा लोग दीन-हीन गांवों में जाकर वहां जनशिक्षा और पर्यावरण सुधार जैसे मुद्दों से जुड़कर काम करें.

भाग्य ने दिया मास्साब का साथ
सौभाग्य से मोहन मास्साब अपने गांव के नजदीक स्थित आदर्श इंटर कॉलेज सुरईखेत में रसायन शास्त्र के लेक्चरर नियुक्त हो गए. कॉलेज में उन्होंने अपने विद्यार्थियों को लेकर ‘पर्यावरण चेतना मंच’ बनाया. गोष्ठियों, रैलियों और प्रतियोगिताओं की मार्फत पास के गांवों के लोगों के बीच पर्यावरण-संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर बातचीत शुरू की. फिर मोहन कांडपाल जी ने उत्तराखंड सेवा निधि से पर्यावरण पर विशेष पाठ्यक्रम का प्रशिक्षण लिया और अपने विद्यालय में भी यह विषय पढ़ाना शुरू कर दिया. एक लाख से ज्यादा पौधारोपण कराने के बाद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के बाद से उत्तराखंड के जल स्रोतों को भी बचाने का काम कर रहे हैं.

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