"एयर पॉल्यूशन से बच्चों में बढ़ सकता है लंग कैंसर और अस्थमा का खतरा, एक दिन में 10 सिगरेट के बराबर धुआं अंदर ले रहे बच्चे"

विशेषज्ञों ने कहा कि वायु प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से बच्चों के फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है और फेफड़ों के कैंसर और अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी सांस संबंधी बीमारियों का खतरा भी काफी बढ़ सकता है. वहीं दिल्ली-एनसीआर की एयर क्वालिटी लगातार तीसरे दिन भी बेहद खराब रही. शुक्रवार सुबह राष्ट्रीय राजधानी का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 409 के गंभीर लेवल पर पहुंच गया, जबकि हरियाणा और उत्तर प्रदेश के पड़ोसी शहरों में भी यह 300 से ऊपर था.

बच्चों की सुरक्षा के लिए दिल्ली के सभी प्राथमिक स्कूलों को ऑनलाइन कर दिया गया है. दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में घोषणा की. उन्होंने कहा कि प्राथमिक स्कूल के बच्चों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं अगले निर्देश तक जारी रहेंगी.

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एयर पॉल्यूशन को प्रभावों को लेकर सेंसिटिव होते हैं बच्चे:

बच्चे विशेष रूप से वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं, जिससे उनके फेफड़ों के कैंसर के विकास का दीर्घकालिक जोखिम बढ़ सकता है. दिल्ली के सीके बिड़ला अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी के कंसल्टेंट डॉ. नितिन एसजी ने बताया, “बचपन में फेफड़ों का कैंसर होना दुर्लभ है. प्रदूषित हवा में कार्बन यौगिक और भारी धातु जैसे जहरीले कण होते हैं जो श्वसन मार्ग की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इस जोखिम के कारण अक्सर अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी पुरानी बीमारियां होती हैं जो शहरी क्षेत्रों में चिंताजनक रूप से आम हैं.

उन्होंने कहा, “समय के साथ प्रदूषण से होने वाली बार-बार की डैमेज और सूजन उम्र बढ़ने के साथ कैंसर सहित गंभीर फेफड़ों की बीमारियों का कारण बन सकती है. बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा और भविष्य में उनके कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए प्रदूषण को कम करना जरूरी है.”

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“हाई पॉल्यूशन से बच्चा 10 सिगरेट के बराबर धुआं ले रहा है”

गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल के चेस्ट सर्जरी, चेस्ट ऑन्को सर्जरी और लंग ट्रांसप्लांटेशन संस्थान के अध्यक्ष डॉ. अरविंद कुमार ने बताया, “हाई लेवल पॉल्यूशन के संपर्क में आने वाला बच्चा अपने जीवन के पहले दिन से ही 10 सिगरेट के बराबर धुआं अंदर ले सकता है.”

लंग केयर फाउंडेशन द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में दिल्ली के 3 स्कूलों में 3000 से ज्यादा बच्चों के स्पाइरोमेट्री टेस्ट किए गए, जिसमें पाया गया कि 11-17 साल की आयु के एक तिहाई बच्चे अस्थमा से पीड़ित थे, जिसमें वायु प्रदूषण को एक जरूरी जोखिम कारक के रूप में पहचाना गया था. इन प्रदूषकों से होने वाली सूजन कैंसर सहित गंभीर फेफड़ों की बीमारियों का कारण बन सकती है. बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा और भविष्य में उनके कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए प्रदूषण को कम करना जरूरी है.

विशेषज्ञों ने चेहरे पर मास्क पहनने और प्रदूषण के एक्सट्रीम घंटों के दौरान बाहरी गतिविधियों को सीमित करने जैसे निवारक उपाय करने को कहा है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)



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