कमाल की है यह सोसायटी, कूड़े से बना रहे सजावटी सामान, बदल रहे पार्कों की सूरत


हिना आज़मी/ देहरादून. वैसे तो पर्यावरण को लेकर कई संस्थाएं काम करती हैं लेकिन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की इको ग्रुप सोसाइटी भी तेजी से प्रगतिमान है. यह संस्था पॉलीथिन के नुकसान को देखते हुए लोगों को जागरूक तो करती ही है लेकिन वहीं वह इस  यूज्ड पॉलिथीन का उपयोग करते हुए इको ब्रिक्स बनाते हैं, जिससे पॉलीथीन कम्प्रेस्ड हो जाती है. वहीं इन इको ब्रिक्स ने देहरादून के क़ई पार्कों की सुंदरता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है.

पर्यावरण के लिए काम करने वाली देहरादून की इको ग्रुप सोसाइटी के अध्यक्ष आशीष गर्ग ने लोकल 18 को जानकारी दी कि अपने घर में ही लोगों को सूखा और गीला कचरा अलग करना चाहिए और उसका ठीक ढंग से निस्तारण करना चाहिए. प्लास्टिक वेस्ट रिसाइकिल हो जाता है लेकिन मल्टीलेयर प्लास्टिक नहीं हो सकता है. हम समय-समय पर लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाते रहते हैं अब तक हम 135 कैंपेन कर चुके हैं, इनमें हम स्कूल, कॉलेज, स्लम एरिया और सार्वजनिक स्थानों में जाकर लोगों से कनेक्ट होते हैं.

इको ब्रिक्स से संवर सकता है शहर

आशीष गर्ग ने कहा कि आज नदियों में हम कूड़ा देखे तो इसमें 60 फीसद प्लास्टिक वेस्ट है. इसलिए हम लोगों को समझते हैं कि आप प्लास्टिक को जहां तहां न फेंककर इको ब्रिक्स बनाने का काम करें. इको ग्रुप द्वारा गांधी पार्क, राज भवन, सहस्त्रधारा और मसूरी में ट्री स्ट्रक्चर, डेकोर्स और वॉटर एटीएम जैसी चीजें बनाई हैं जिन्हें देखकर राह चलते लोग भी सोचने लगते हैं कि कैसे कचड़े से शहर की सुंदरता बढ़ाई जा रही है. उन्होंने बताया कि हम जो भी अपने दैनिक जीवन में किसी भी चीज का रैपर हो उसे इकट्ठा कर छोटे-छोटे टुकड़े करके उन्हें बोतल में भरकर उसे कम करने का प्रयास करते हैं, इससे ये प्लास्टिक इन बॉटल में लंबे अरसे तक रहेंगी जो इको ब्रिक्स के रूप में स्ट्रक्चर बनाने में उपयोग हुई है.

सबको साथ मिलकर जुटना है जरूरी

वहीं देहरादून के स्थानीय निवासी अनिल मेहता का कहना है कि देहरादून शहर का तापमान और वातावरण बहुत बदल गया है क्योंकि यहां जनसंख्या के बढ़ने के चलते प्रदूषण भी बढ़ा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है पॉलिथीन का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल होना जबकि सरकार जुर्माना लगाती है लेकिन पॉलीथिन बंद नहीं होती है बल्कि यह कभी बंद नहीं हो सकती है क्योंकि फ़ूड इंडस्ट्री और अन्य इंडस्ट्री भी इस पर निर्भर है, इसलिए बेहतर है इसका कोई विकल्प ढूंढा जाए. लोगों के द्वारा पॉलीथिन का निस्तारण किया जाए इसके लिए वह इको ग्रुप सोसायटी में जुड़कर लोगों को समझाने का काम कर रहें हैं.

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