श्रीनगर गढ़वाल. उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के बीजीआर परिसर में डॉ बी गोपाला रेड्डी की मूर्ति का अनावरण जिलाधिकारी पौड़ी ने विधिवत रूप से किया. यह मूर्ति लंबे समय से पुराने कलेक्ट्रेट परिसर में स्थापित की गई थी. छात्र काफी समय से बीजीआर परिसर में इस मूर्ति को स्थापित करने की मांग कर रहे थे.
इस दौरान जिलाधिकारी डॉ आशीष चौहान ने बी गोपाला रेड्डी के कार्यों और योगदान को याद किया. जिलाधिकारी ने यूनिवर्सिटी के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि रेड्डी का शिक्षा और सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान रहा. उनकी प्रतिमा छात्रों में समाज और शिक्षा के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करने के लिए नई ऊर्जा देगी.
गढ़वाल विश्वविद्यालय के बीजीआर परिसर का नाम स्वतंत्रता सेनानी और दूरदर्शी राजनेता डॉ बेजवाड़ा गोपाला रेड्डी के नाम पर रखा गया है. उनका जीवन सेवा और बलिदान का प्रतीक है. डॉ रेड्डी का जन्म 5 अगस्त 1907 को आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के छोटे से गांव बुचिरेड्डीपालम में हुआ था. उनके माता-पिता, पत्ताभिराम रेड्डी और सीतम्मा ने उनके बचपन को सादगी और नैतिकता की नींव पर तैयार किया. अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद उन्होंने 1921 से 1924 तक मछलीपट्टनम के आंध्र जातीय कताशाला में शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद, उन्होंने पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की, जहां उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर के विचारों से प्रेरणा मिली.
शिक्षक के रूप में करियर की शुरुआत
डॉ रेड्डी ने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की और शिक्षा के माध्यम से समाज को दिशा देने का प्रयास किया. इसके बाद उन्होंने पत्रकारिता में कदम रखा. रवींद्रनाथ टैगोर के प्रति उनके गहरे आदर ने उन्हें उनके कई प्रसिद्ध ग्रंथों को तेलुगु भाषा में अनुवाद करने के लिए प्रेरित किया, जिनमें नृत्य नाटिका, चित्रांगदा विशेष रूप से लोकप्रिय है. महात्मा गांधी के अहिंसा, आत्मनिर्भरता और सेवा के सिद्धांतों से प्रेरित होकर डॉ रेड्डी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भागीदार बने. उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और वेल्लोर और तंजावुर जेलों में कारावास की कठिनाइयों को झेला. उनकी सक्रियता केवल व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं थी, उन्होंने युवाओं को प्रेरित किया और जनता की राय को संगठित कर स्वतंत्रता आंदोलन को नई ऊंचाई दी.
1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल
भारत के आजाद होने के बाद डॉ रेड्डी ने सार्वजनिक सेवा और शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर उन्होंने अपने प्रशासनिक कौशल और जनहित के प्रति समर्पण से जल्द ही प्रतिष्ठा अर्जित की. 1953 में आंध्र प्रदेश राज्य की स्थापना में उनकी भूमिका ऐतिहासिक थी. मार्च 1955 से अक्टूबर 1956 तक आंध्र राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने कृषि सुधारों, ग्रामीण विकास और शिक्षा के विस्तार पर विशेष ध्यान दिया. आंध्र प्रदेश के गठन के बाद उन्होंने गृह मंत्री और वित्त मंत्री के रूप में राज्य प्रशासन में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे बीजीआर
जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में 1962-1963 के दौरान सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में उन्होंने भारत की सांस्कृतिक धरोहर को सुदृढ़ करने और सार्वजनिक प्रसारण को मजबूत बनाने का कार्य किया. उनकी इस प्रशासनिक कुशलता और निष्पक्षता के कारण उन्हें उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया. इस दौरान उन्होंने राज्य में क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने और एकता को बढ़ावा देने के लिए काम किया. डॉ बेजवाड़ा गोपाला रेड्डी का 9 दिसंबर 1997 को निधन हो गया.
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FIRST PUBLISHED : December 5, 2024, 18:02 IST