बागेश्वर. उत्तराखंड के पहाड़ पलायन की समस्या से जूझ रहे हैं. खेत-खलिहान बंजर हो रहे हैं, गांव खंडहर में बदल रहे हैं, और जंगली जानवर अब इन वीरान जगहों पर विचरण कर रहे हैं. लेकिन बागेश्वर के गरुड़ की देवनाई घाटी के ग्रामीणों ने महिलाओं के साथ मिलकर इस समस्या से जूझने के लिए एक नई राह खोजी है. यहां के ग्रामीणों ने ‘किर्साण महोत्सव’ नामक एक कार्यक्रम शुरू किया, जो न केवल पलायन रोकने बल्कि युवा पीढ़ी को उनकी जड़ों से जोड़ने का प्रयास है.
यह महोत्सव महिलाओं के योगदान और ग्रामीण जीवन की महत्ता को उजागर करता है. इस कार्यक्रम के केंद्र में हैं गांव की महिलाएं, जो घास काटने, पशुपालन, और ग्रामीण ज्ञान में अपनी दक्षता का प्रदर्शन करती हैं. महोत्सव को तीन चरणों में आयोजित किया जाता है. पहले चरण में गांव-गांव जाकर महिलाओं को इस महोत्सव से जोड़ा जाता है. दूसरे चरण में विभिन्न प्रतियोगिताएं होती हैं. जैसे- घास काटने का मुकाबला.
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इस साल 300 महिलाओं ने 2 मिनट में सबसे ज्यादा घास काटने की प्रतियोगिता में भाग लिया, जिसमें से 24 महिलाएं अंतिम चरण तक पहुंची. दिसंबर में इन महिलाओं के पशुओं की देखभाल और ग्रामीण परिवेश के ज्ञान के आधार पर विजेताओं का चयन होगा. प्रतियोगिता में पहला स्थान प्राप्त करने वाली महिला को 15,000 रुपये, दूसरे स्थान पर रहने वाली को 12,000 रुपये, और तीसरे स्थान पर आने वाली को 10,000 रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा. अन्य सभी प्रतिभागियों को भी सांत्वना पुरस्कार दिए जाते हैं.
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डॉ. किशन राणा, जो इस महोत्सव के मुख्य आयोजकों में से एक हैं, बताते हैं कि ‘किर्साण महोत्सव’ का आरंभ 2016 में किया गया था. इसका आयोजन 10 ग्राम पंचायतों के सहयोग से होता है. इस पहल ने महिलाओं के काम को न केवल सराहा बल्कि ग्रामीण समुदाय को एकजुट भी किया है. इस महोत्सव में हिस्सा लेने वाली चम्पा देवी कहती हैं, “इस महोत्सव का हमें पूरे साल इंतजार रहता है. प्रतियोगिता में जीतने पर न केवल हमें सम्मान मिलता है बल्कि हमारी मेहनत का सही मूल्यांकन भी होता है. “खिमुली देवी ने कहा,”घास काटने और पशुपालन जैसे कार्यों पर आधारित प्रतियोगिता के बारे में कभी नहीं सोचा था. लेकिन इस कार्यक्रम ने इन कामों को भी गर्व का विषय बना दिया है.”
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‘किर्साण महोत्सव’ न केवल महिलाओं की मेहनत को पहचान देता है बल्कि पलायन रोकने और गांवों में उत्साह भरने का जरिया भी बन रहा है. इस अनोखे आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं, जिससे ग्रामीण पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है. ग्रामीणों के इस छोटे से प्रयास ने यह साबित कर दिया है कि समस्या चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, सामूहिक इच्छाशक्ति और नवाचार से उसे हल किया जा सकता है. ‘किर्साण महोत्सव’ न केवल एक कार्यक्रम है, बल्कि यह उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं को सहेजने की एक मिसाल है.
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FIRST PUBLISHED : December 2, 2024, 21:12 IST