ग्राउंड रिपोर्ट : पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी पहाड़ों पर लेगी और कितनी जानें?


रामनगर/अल्‍मोड़ा (गोविन्द पाटनी/किशन जोशी) : पहाड़ों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी का खामियाजा लोग अपनी जान गंवाकर दे रहे हैं. त्यौहारों के पहले घर लौटना और फिर रोजगार में बच्चों की पढ़ाई के लिए मैदान लौटने के लिए वाहनों की कमी जान की दुश्मन बनी है. अल्‍मोड़ा जिले में हुई बड़ी बस दुर्घटना, जिसमें 36 यात्रियों की मौत होना, इसका बड़ा सबूत है. सल्ट के मरचूला में हादसे की शिकार इस 42 सीटर बस में 63 लोगों का सवार होना कई सवाल खड़े करता है. पढ़ें इस पर उत्तराखंड से एक खास रिपोर्ट…

पहले आपको बता दें कि बीते सोमवार यानि 4 नवंबर को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में एक बस के गहरी खाई में गिर जाने से 36 यात्रियों की मौत हो गई और 27 अन्य घायल हो गए. घायलों में 3 की स्थिति गंभीर बनी हुई है. घटना के वक्त 43 सीट वाली बस में 63 लोग सवार थे. गढ़वाल मोटर ओनर्स एसोसिएशन द्वारा संचालित बस गढ़वाल क्षेत्र में पौड़ी से लगभग 250 किलोमीटर दूर कुमाऊं में रामनगर जा रही थी. यह दुर्घटना सुबह करीब आठ बजे हुई. उन्होंने बताया कि बस अपने गंतव्य रामनगर से सिर्फ 35 किलोमीटर दूर थी जब यह अल्मोड़ा के मार्चुला क्षेत्र में करीब 200 मीटर गहरी खाई में गिर गई.

दरअसल, अपने परिवार के साथ त्यौहार मनाना हर किसी कि इच्छा होती है, लेकिन उत्‍तराखंड में इसके लिए सड़कों पर सार्वजनिक वाहनों की कमी सबसे बड़ी परेशानी है. ऊपर से खस्ताहाल सड़कें. सड़कों के किनारें पैराफिट होते तो मरचूला में दर्जनों लोगों की जान बच सकती थी. मृतकों और घायलों का गुस्सा इतना अधिक था कि मौके पर पहुंचे जनप्रतिनिधि और अधिकारियों को भी विरोध का सामना करना पड़ा. इस जांच कुमाऊं कमिश्‍नर को दी है.

अल्मोड़ा जिले की आज तक की इस सबसे बड़ी दुर्घटना से सभी को हिलाकर रख दिया. 20 साल पहले एक केएमओयू की बस चितई के पास कालीधार में गिरी थ, जिसमें 29 लोगों की मौके पर ही मौत हुई थी. 10 साल पहले मौलेखाल में 12 लोगों की सड़क दुर्घटना में मौत हुई थी. इसके लिए कांग्रेस ने लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई के साथ ही त्यौहारों में सार्वजनिक वाहनों की संख्या बढ़ाने की मांग करते हुए सरकार को घेरा है.

36 लोगों की मौत का जिम्मेदार ओवरलोड है या फिर सिस्टम? जिससे लोगों को अपने रोजगार और बच्चों के स्कूल के लिए जल्दी अपने गंतव्य तक पहुंचना था. अगर बेहतर सड़कें होती और वाहनों की संख्या अधिक होती तो लोगों को खड़े-खड़े कई किलोमीटरों का सफर पहाड़ में तय नहीं करना पड़ता. अब देखना होगा कि इसक घटना के बाद क्या सिस्टम जागेगा या फिर कुछ दिनों की सुर्खियां बनने के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला जायेगा?

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