धर्मचक्रों की कतार और भिक्षुओं का मंत्र जाप, बुद्ध मंदिर का अलौकिक अनुभव


देहरादून. अगर आप उत्तराखंड की राजधानी देहरादून घूमने का मन बना रहे हैं, तो क्लेमेंटाउन स्थित बौद्ध मंदिर, जिसे माइंड्रोलिंग मठ (Mindrolling Monastery Dehradun) के नाम से भी जाना जाता है, जरूर देखने जाएं. जैसे ही आप मेन गेट से अंदर प्रवेश करेंगे, दाईं ओर धर्मचक्रों की एक लंबी कतार आपका स्वागत करेगी. श्रद्धालु इन धर्मचक्रों को दाहिने हाथ से घुमाते हुए आगे बढ़ते हैं और यह अनुभव आपको शांति और सकारात्मक ऊर्जा से भर देगा. अगर आप सुबह के समय जाएंगे, तो वहां भिक्षुओं द्वारा ‘ओम मणि पद्मे हुम’ मंत्र जाप भी सुनने को मिलेगा, जो पूरे वातावरण को और भी आध्यात्मिक बना देता है.

धर्मचक्रों वाली गैलरी पार करते ही आपके सामने एक विशालकाय बौद्ध स्तूप दिखाई देगा. इसकी ऊंचाई 185 फीट और चौड़ाई 100 फीट है, जो इसे दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप बनाती है. यह स्तूप तिब्बती स्थापत्य कला का एक अद्वितीय नमूना है. इस स्तूप का निर्माण 28 अक्टूबर 2000 को विश्व शांति की कामना के साथ किया गया था. यहां आकर आपको आंतरिक शांति और मानसिक सुकून का अनुभव होगा. यह स्थान न केवल पर्यटकों के लिए, बल्कि आध्यात्मिकता के खोजियों के लिए भी एक अद्भुत गंतव्य है. इसके अलावा, यहां महात्मा बुद्ध की एक विशालकाय मूर्ति भी है.

तेनक्याब लामा ने बताए मंदिर से जुड़े तथ्य
मंदिर के ज्वाइंट सेक्रेटरी तेनक्याब लामा ने लोकल 18 से बातचीत में कहा कि इस मंदिर को मिंड्रोलिंग मोनेस्ट्री कहा जाता है. हमारे तिब्बत के धर्म में चार अलग-अलग स्कूल होते हैं. उनमें से हमारे मंदिर जिन्हें न्यिंगमापा कहते हैं. अन्य तीन विद्यालय शाक्य, काजूयू और गेलुक हैं. न्यिंगमापा के भीतर कई समुदाय होते हैं. हमारे देहरादून में रहने वाले लोगों ने बड़े प्यार से इस मंदिर को बुद्ध टेंपल (Buddha Temple Dehradun) नाम दिया है. बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं.

1959 में तिब्बत से आए थे भारत
उन्होंने बताया कि वह साल 1959 में आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा के साथ तिब्बत से भारत आए थे. इसके पीछे का कारण यह था कि तिब्बत पर चीन ने कब्जा कर लिया था और हम चीन के शासन को कभी भी स्वीकार नहीं करते हैं. तिब्बत की निर्वासित सरकार दलाई लामा के साथ हिंदुस्तान आई. बुद्ध भगवान से जुड़ी हिंदुस्तान की धरती बेहद पवित्र है. बुद्ध भगवान ने जितनी भी संस्कृत में किताबें लिखीं, उन्हें हमारे अनुवादकों ने तिब्बती भाषा में बदला. 8वीं शताब्दी में ‘गुरुपद्म संभव’ ने तिब्बत में आकर बौद्ध धर्म का प्रचार किया था.

1965 में स्थापित हुआ बुद्ध मंदिर
तेनक्याब लामा ने आगे कहा कि भारत आने के बाद हमने धर्म और इसके प्रचार के बारे में सोचा, जिसका संरक्षण बेहद जरुरी था. हमारे बौद्ध धर्म से जुड़े जितने भी बड़े-बड़े गुरु थे, उन्होंने अलग-अलग जगह जाकर मंदिर बनाया शुरु किया. देहरादून स्थित यह मंदिर 25 एकड़ में फैला हुआ है. हमारे गुरु ने 1965 में इस मंदिर की स्थापना की थी. धर्म के प्रचार के उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई थी. दलाई लामा 4-5 बार यहां आ चुके हैं. मंदिर के पास एक हमारी तिब्बती कॉलोनी है, जिसका नाम भी दलाई लामा ने दिया था. हम तिब्बत से हिंदुस्तान इसलिए आए क्योंकि चीन के पास कोई धर्म नहीं है, वो मंदिरों को तोड़ देते हैं.

यहां के विद्यालय में निशुल्क शिक्षा
मिंड्रोलिंग मठ का जिक्र करते हुए तेनक्याब कहते हैं कि यहां छोटे बच्चों के लिए स्कूल है. प्राइमरी स्कूल में कक्षाएं होती हैं. स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद यूनिवर्सिटी में दाखिला दिया जाता है, जहां दर्शनशास्त्र पढ़ाया जाता है. इसके अलावा यहां एक मेडिटेशन सेंटर है, जहां छात्रों को तीन साल तक रहना पड़ता है. यह पूरा कोर्स लगभग 22 वर्षों का होता है. खास बात है कि जो भी बच्चा यहां पढ़ता है, वो किसी भी तरह की फीस नहीं देता है, पूरी तरह से निशुल्क होता है. छात्रों की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्हें भारत के अन्य बौद्ध केंद्रों से जुड़े स्कूलों में शिक्षक के तौर पर भेजा जाता है.

कैसे पहुंचे बुद्ध मंदिर या मिंड्रोलिंग मोनेस्ट्री?
अगर आप पर्यटन के साथ-साथ आध्यात्मिकता को बेहद करीब से देखना चाहते हैं, तो आप देहरादून के बस अड्डे से 7 किलोमीटर की दूरी पर सिटी बस या ऑटो के जरिए आसानी से पहुंच सकते हैं.

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