पिथौरागढ़ की गलियों में ये कैसा विकास? रास्ता खोद बिछाई सीवर लाइन, फिर मुंह फेर लिया 


रिपोर्ट- हिमांशु जोशी

पिथौरागढ़. उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में इन दिनों शहरी इलाकों को सीवर लाइन से जोड़ने के लिए जल निगम द्वारा शहर के आंतरिक मार्गों में सीवर लाइन बिछाई जा रही है. वैसे तो यह कदम जनता को राहत देने वाला है लेकिन पिथौरागढ़ जिले में यह उल्टा साबित हो रहा है. सीवर लाइन बिछाने के बाद यहां के स्थानीय लोगों को आफतों के दौर से गुजरना पड़ रहा है. मामला पिथौरागढ़ की केदार कॉलोनी का है, जहां हजारों की संख्या में जनसंख्या निवास करती है. इस कॉलोनी को जोड़ने वाले मुख्य मार्ग को सीवर लाइन बिछाने के लिए खोदा जाता है, सीवर तो बिछा दी जाती है लेकिन रास्ते को वैसा ही खस्ता हालत में छोड़ दिया जाता है, जिससे इस इलाके में स्कूल जाने वाले बच्चों, मरीजों, विकलांगों और बुजुर्गों को काफी दिक्कतों का सामना पड़ रहा है. साथ ही मिट्टी के टीलों से पटे इस इलाके में अब गंदे बरसाती पानी की निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे सारा पानी लोगों की दुकानों और घरों में घुस रहा है.

News 18 Local ने इस समस्या के बारे में जब स्थानीय लोगों से बातचीत की, तो उन्होंने इस लापरवाही पर नाराजगी जाहिर की. गोपाल राम ने कहा कि यहां का ठेकेदार गायब है. बरसात में उनकी दुकान में पानी घुस जाता है. इस जगह 4-5 स्कूल भी हैं. बच्चों को भी यहां से गुजरने में काफी परेशानी होती है. गीता भट्ट ने कहा कि बारिश आते ही उनके घर में पानी घुस जाता है. अधिकारियों से कई बार बोल दिया है लेकिन अभी तक कुछ नहीं किया गया है.

पिछले 4 महीनों से रास्ते की खस्ताहाल हालत अभी तक नहीं सुधारी गई है, जो यहां सरकारी तंत्र की उदासीनता को दिखाता है. स्थानीय जनता की समस्या को लेकर जब न्यूज 18 लोकल ने जल निगम के अधिशासी अभियंता रंजीत धर्मसत्तू से बात की, तो उन्होंने बताया कि यह रास्ता नगरपालिका के अंतर्गत आता है, इसमें जल निगम की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है. साथ ही रास्ता खोदने से पहले ही नगरपालिका से इस रास्ते को बनाने की जिम्मेदारी लेने की बात की गई थी.

नगरपालिका के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह रावत को जब इस मामले से अवगत कराया गया, तो उन्होंने बिना अनुमति के निर्माण कार्य करने के लिए नगरपालिका को हुए नुकसान की भरपाई जल निगम से करने की बात कही है. साथ ही लोगों से भी इस तरह के कार्यों में सहयोग करने की अपील की है.

अब इसे सरकारी तंत्र की उदासीनता कहें या बिना किसी प्लान के योजनाएं शुरू करना, जनता के हित के नाम से बनी योजनाएं ही जनता के लिए मुसीबत बन रही हैं, जिसका उदाहरण यहां देखने को मिलता है. जनता की समस्याओं से मुंह फेर लेना इस बात को दिखाता है कि यहां जनता के हित में एक समस्या खत्म होती है तो उसी के साथ दूसरी भी जन्म ले लेती है.

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