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Dehradun News: देहरादून में धाद संस्था ‘एक कोना कक्षा का’ अभियान चला रही है, जिसमें सरकारी स्कूलों में साहित्यिक किताबें रखी जाती हैं. यह पहल बच्चों की सोच और संवेदनशीलता को बढ़ाने का प्रयास है.
सरकारी स्कूलों के बच्चों को साहित्य से जोड़ने पर काम कर रही धाद संस्था,
हाइलाइट्स
- धाद संस्था सरकारी स्कूलों में साहित्य से जोड़ने का अभियान चला रही है.
- ‘एक कोना कक्षा का’ अभियान 2018 में देहरादून से शुरू हुआ.
- लोग 100 रुपये प्रतिमाह देकर इस मुहिम में सहयोग कर सकते हैं.
देहरादून: बच्चों की शिक्षा में सिर्फ स्कूल की किताबें ही नहीं, बल्कि भाषा और साहित्य की समझ भी बहुत जरूरी होती है. कई बार उपन्यास और साहित्यिक किताबें बच्चों के सोचने-समझने की क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ उनके व्यवहार में भी सकारात्मक बदलाव लाती हैं. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में काम कर रही संस्था ‘धाद’ (Dhad) इसी सोच के साथ सरकारी स्कूलों में बच्चों को साहित्य से जोड़ने के लिए एक खास अभियान चला रही है, जिसका नाम है ‘एक कोना कक्षा का’. इस पहल के तहत सरकारी स्कूलों की कक्षाओं के एक कोने में साहित्यिक किताबें रखी जाती हैं, ताकि बच्चे उन्हें पढ़ सकें और उनमें भाषा व साहित्य के प्रति रुचि पैदा हो. यह पहल न सिर्फ किताबों से जुड़ाव का मौका देती है, बल्कि बच्चों को एक अलग सोच और संवेदनशीलता भी देती है, जो आमतौर पर उन्हें स्कूलों में नहीं मिल पाती.
कैसे शुरू हुई यह पहल
धाद संस्था के ‘एक कोना कक्षा का’ प्रोजेक्ट की सचिव आशा डोभाल बताती हैं कि यह कार्यक्रम 2018 में देहरादून के एक सरकारी स्कूल से शुरू किया गया था। शुरुआत में सिर्फ 28 स्कूल इससे जुड़े थे. लेकिन धीरे-धीरे यह मुहिम उत्तराखंड के कई जिलों में फैल गई और आज प्रदेश के कई सरकारी स्कूलों में ‘एक कोना कक्षा का’ अभियान चल रहा है. इस अभियान का मकसद है कि हर बच्चे तक साहित्य पहुंचे, खासकर उन तक जो सामान्य रूप से इन किताबों से दूर रह जाते हैं.
धाद संस्था का अनोखा प्रयास
आशा डोभाल बताती हैं कि आमतौर पर सरकारी स्कूलों के बच्चों को किताबों की सुविधा नहीं मिल पाती. यहां तक कि कई बार लाइब्रेरी भी नहीं होती या किताबों तक उनकी पहुंच नहीं बन पाती. वहीं प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को किताबें आसानी से मिल जाती हैं. वहां लिटरेचर फेस्टिवल जैसे आयोजन होते हैं और अभिभावक भी बच्चों के लिए पुस्तक मेलों से किताबें खरीद लाते हैं. इसके कारण दोनों तरह के स्कूलों में बच्चों के अनुभव और सोचने का नजरिया अलग हो जाता है. धाद संस्था का यह प्रयास है कि इस अंतर को कम किया जा सके.
आप भी कर सकते हैं योगदान
धाद संस्था चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस अभियान से जुड़ें. आशा डोभाल बताती हैं कि कोई भी व्यक्ति इस मुहिम का हिस्सा बन सकता है. यदि आप डोनर के तौर पर जुड़ना चाहते हैं तो सिर्फ 100 रुपये प्रतिमाह के हिसाब से सहयोग कर सकते हैं. आपके सहयोग से स्कूल की किसी कक्षा के एक कोने में किताबें रखी जाएंगी और उस जगह पर डोनर के नाम की प्लेट भी लगाई जाएगी. इसके अलावा, आप किताबें दान करके भी इस मुहिम में सहयोग कर सकते हैं. कई ऐसे लोग हैं जो अपने गांव-घर से बाहर नौकरी या पढ़ाई के लिए जा चुके हैं और अपने स्कूल के लिए कुछ अच्छा करना चाहते हैं. उनके लिए यह एक शानदार मौका है कि वे अपनी जड़ों से जुड़े रहें और आने वाली पीढ़ियों को कुछ अच्छा दे सकें. ज्यादा जानकारी के लिए आप https://www.facebook.com/share/1AHTT7iK9q/ पर सम्पर्क कर सकते हैं.