स्कूलों में बच्चों को बाघ बकरी-मुर्गा झपट-पिट्ठू खेल की ट्रेनिंग, जानें वजह


श्रीनगर गढ़वाल. बदलते परिवेश में बच्चों का ध्यान पारंपरिक खेलों से हटकर आधुनिक खेलों की ओर जा रहा है. उत्तराखंड के पारंपरिक खेल भी धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं. पारंपरिक खेलों को बचाने के लिए अब ट्रेडिशनल गेम्स एसोसिएशन पौड़ी जिले के स्कूलों और गांव में जाकर पारंपरिक खेलों जैसे- बाघ बकरी, पिट्ठू, राजबट्टी, मुर्गा झपट का प्रशिक्षण दे रही है ताकि उत्तराखंड के पारंपरिक खेलों को प्रोत्साहन मिले और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इनके बारे में जानकारी पहुंच सके.

ट्रेडिशनल गेम्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मनीष कोठियाल ने लोकल 18 को बताया कि आधुनिक समय में बच्चों का ध्यान पारंपरिक खेलों से हटकर आधुनिक गैजेट और मोबाइल फोन की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहा है, जिसका दुष्प्रभाव उनके शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है. आज से कुछ समय पहले जब ग्रामीण क्षेत्रों में खेल मैदान का अभाव हुआ करता था, तब बाघ बकरी, पिट्ठू, राजबट्टी, मुर्गा झपट जैसे खेल ही खेले जाते थे, लेकिन वर्तमान समय में ये खेल विलुप्ति की कगार पर हैं.

गांव और स्कूलों में दिया जा रहा प्रशिक्षण

उन्होंने कहा कि पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देने के लिए उनकी टीम पौड़ी जिले के स्कूलों और गांवों में जाकर बच्चों को प्रशिक्षण दे रही है. 2025 में जब उत्तराखंड में राष्ट्रीय खेल होंगे, उस दौरान उत्तराखंड के पारंपरिक खेलों को भी प्रदर्शित किया जाएगा, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर राज्य के पारंपरिक खेलों को पहचान मिलेगी. मुख्य खेल सचिव अमित सिन्हा से भी वार्ता की गई. अगर सरकार सहयोग करें तो पारंपरिक खेलों को एक नई दिशा मिलेगी.

सामाजिक संस्थाओं और ग्राम प्रधानों की लेंगे मदद

मनीष कोठियाल ने कहा कि ग्रामीण स्तर पर पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देने के लिए ट्रेडिशनल गेम्स एसोसिएशन स्कूलों में व्यायाम शिक्षकों, ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम प्रधानों और सामाजिक संस्थाओं की मदद से खेलों का प्रशिक्षण देगी. स्थानीय बच्चों को पारंपरिक खेलों की जानकारी दी जाएगी और खेल दिवस पर पौड़ी जिले के स्कूलों में एक पारंपरिक खेल का डेमोंस्ट्रेशन भी दिया जाएगा ताकि बच्चों तक इनकी जानकारी पहुंच पाए.

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