स्पर्धा सरकारी स्कूलों की, खर्चा खिलाड़ियों का

कोटा। प्रदेश में शिक्षा विभाग की ओर से 68वीं खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। जिनमें ब्लॉक स्तर से चयनित खिलाड़ी जिला स्तर और जिला स्तर से चयनित खिलाड़ी राज्य स्तर पर खेलते हैं। वहीं इन प्रतियोगिताओं के लिए खिलाड़ियों को अपने जिलों से भी बाहर जाना पड़ता है। नियमानुसार किसी विद्यालय से खिलाड़ी के राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में जाने की स्थिति में उसके खर्चे का निर्वाहन विद्यालय प्रशासन की ओर से किया जाना चाहिए लेकिन प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए खिलाड़ियों को खुद से ही सारा खर्चा देना पड़ रहा है, जबकि प्रतियोगिता शिक्षा विभाग की है।

एक खिलाड़ी के ले रहे 4500 रुपए तक
शिक्षा विभाग की ओर से आयोजित की जा रही प्रतियोगिताओं में एक खिलाड़ी से 4500 रुपए तक लिए जा रहे हैं। जिसमें 1 हजार रुपए ट्रैक सूट के लिए, सात दिन के खाना के लिए प्रतिदिन 200 रुपए के हिसाब से 1400 रुपए, 1800 रुपए आने जाने का किराया और 300 रुपए कोच की फीस के रूप में लिए जा रहे हैं, जो कुल मिलाकर 4500 रुपए हो जाते हैं। हालांकि सरकारी विद्यालयों में अभिभावकों से ट्रैक सूट के आधे रुपए छोड़कर सारा खर्चा स्कूल की ओर से निर्वाहित किया जाता है। जबकि प्राइवेट विद्यालयों में सारा खर्चा विद्यार्थियों से लिया जा रहा है। शिक्षा विभाग के नियमों के तहत जिला स्तरीय और राज्य स्तरीय खेलकूद प्रतियोगिताओं में जाने वाले खिलाड़ियों के खर्चे का निर्वाहन खेलकूद फंड से किया जाना चाहिए। 

पदक जीतने के बाद भी कोई लाभ नहीं
कोटा महाबली र्स्पोट्स एकेडमी के कोच अशोक गौत्तम ने बताया कि कोटा से हर साल खिलाड़ी राज्य और राष्ट्रीय स्तर में अनेकों पदक जीतते हैं। लेकिन उन्हें इसका कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। सरकार और क्रीड़ा परिषद की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर भाग लेने वाले खिलाड़ी को सरकारी नौकरी में 2 फीसदी और पदक जीतने पर नौकरी का प्रावधान है लेकिन साल 2022 के बाद से वो भी ठंडे बस्ते में है। इसके साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने पर 1 से 2 लाख तक पुरस्कार राशि और राज्य स्तर पर पदक जीतने पर 20 से 50 हजार रुपए तक पुरस्कार राशि का नियम है लेकिन कोटा समेत राज्य के सैंकड़ों खिलाड़ियों को 2017 से किसी प्रकार की पुरस्कार राशि नहीं मिली है।

अभिभावकों का कहना है
विद्यालय की ओर से हर साल फीस में खेलकूद का शुल्क लिया जाता है। इसके बाद भी हर साल बच्चों से राज्य स्तरीय और जिला स्तरीय प्रतियोगिता में जाने के दौरान 4000 से 4500 रुपए तक लिए जाते हैं और नहीं देने पर खेलने से वंचित कर दिया जाता है। साथ ही बच्चों के मेडल जीतने पर भी किसी प्रकार का लाभ नहीं मिलता सरकार की ओर से योजना बनाने के बाद भी ठंडे बस्ते में पड़ी है।
– सुनील कुमार सुंडा, बॉक्सिंग खिलाड़ी कुनाल सुंडा के पिता

बच्चे का चयन राज्य स्तरीय वुशु प्रतियोगिता के लिए हुआ है। ऐसे में बच्चे मैच खेलने के लिए बाड़मेर जा रहे हैं। जिसमें विद्यालय की ओर से चयन पत्र के साथ 4500 रुपए की फीस जमा करने के लिए कहा गया है। जबकि बच्चा विद्यालय से चयनित हुआ है तो विद्यालय को अपने स्तर पर ही खर्च का निर्वाहन करना चाहिए।
– राजेंद्र खटाना, वुशु खिलाड़ी शिविका खटाना के पिता 

खिलाड़ी जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में जाते हैं और पदक जीतते हैं तो विद्यालयों का नाम रोशन होता है। ऐसे में विद्यालयों की जिम्मेदारी बनती है उनके खर्चे और सुविधाओं का ध्यान रखने की। लेकिन विद्यालय सारा खर्चा परिजनों से ही निर्वाहन कराता है। साथ ही प्रतियोगिताओं में पदक जीतने के बाद की पुरस्कार राशि अभी तक नहीं आ पाई है।
– सुधीर शर्मा, वुशु खिलाड़ी नव्या शर्मा के पिता

विद्यालय की ओर से खिलाड़ियों को किसी प्रकार की सुविधा नहीं दी जाती है। बच्चों को अपने स्तर पर ही सारी सुविधाएं करनी पड़ती हैं। जब सरकारी प्रतियोगिता है तो खर्चा भी सरकार और विद्यालय के स्तर पर होना चाहिए। अगर खिलाड़ी निजी तौर पर जाए तो अलग बात है। इसके चलते कई बच्चे प्रतियोगिताओं से वंचित रह जाते हैं।
– रितेश गुर्जर, बॉक्सिंग खिलाड़ी खुशी गुर्जर के पिता

इनका कहना है
राज्य स्तर और जिला स्तर पर चयनित खिलाड़ियों के प्रतियोगिता में भाग लेने पर उनके खर्चे का निर्वाहन विद्यालय की जिम्मेदारी है अगर कोई ले रहा है तो ये गलत है। वहीं राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने पर खिलाड़ियों को कई तरह की सुविधाएं दी जाती हैं। 
– शशि कपूर, उप निदेशक खेलकूद, माध्यमिक शिक्षा विभाग

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