100 साल से भी पुराना भीमताल का हरेला मेला, पर्यावरण संरक्षण का देता है संदेश


नैनीताल. देवभूमि उत्तराखंड अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है. यहां की संस्कृति बेहद समृद्ध है, जिनकी झलक यहां के खानपान, रहन-सहन और यहां के उत्सवों में देखी जाती है. ऐसा ही एक उत्सव है भीमताल का हरेला मेला, जो लगभग 100 सालों से भी ज्यादा पुराना है. उत्तराखंड के नैनीताल से लगभग 24 किमी की दूरी पर भीमताल स्थित है. यहां हर साल हरेला मेला लगता है, जो उत्तराखंड के पौराणिक मेलों में से एक है. पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता यह मेला बेहद खास है, जिसका स्थानीय लोगों को बेहद इंतजार रहता है. इस मेले में आपको सांस्कृतिक कार्यक्रम, कई तरह की दुकानें व झूले देखने को मिल जाएंगे.

मेला समिति के सदस्य और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व जिला मंत्री दिनेश सांगुड़ी ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि भीमताल का हरेला मेला प्रकृति को समर्पित है. यह उत्तराखंड का पौराणिक मेला है. इस मेले को 100 साल से भी अधिक समय हो गया है. उन्होंने बताया कि इस मेले का स्थानीय और आसपास के ग्रामीणों को पूरे साल इंतजार रहता है. इस साल हरेला मेले की शुरुआत 16 जुलाई से हुई है, जो 22 जुलाई तक चलेगा. इस मेले में आप उत्तराखंड की संस्कृति और प्रकृति का मिलाजुला संगम देख सकते हैं. यहां रंगारंग कार्यक्रम होते हैं. दुकानें और झूले लगते हैं, जिनका लुत्फ स्थानीय ही नहीं बल्कि अन्य जगहों से आने वाले लोग भी लेते हैं.

भीमताल व आसपास लगाते हैं पेड़

दिनेश सांगुड़ी बताते हैं कि यह मेला पहले धान की खेती के लिए प्रसिद्ध था. मेले के दौरान स्थानीय लोग, स्कूली बच्चे और कई स्वयं सहायता समूह अत्यधिक संख्या में भीमताल और इसके आसपास वृक्षारोपण करते हैं. साथ ही हरेला मेला आने वाली पीढ़ी को भी प्रकृति के संरक्षण का संदेश देता है. इसी वजह से भीमताल का हरेला मेला बेहद खास है.

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