देहरादून: हरे-भरे जंगलों से सटी एक भव्य इमारत खड़ी है, जिसे देखकर किसी का भी मन ठहर जाए. हम बात कर रहे हैं एफआरआई (Forest Research Institute) की. यह केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि विज्ञान, इतिहास, कला और प्रकृति का जोड़ है. इसकी भव्यता आपको अंग्रेज़ों के दौर में ले जाती है, लेकिन इसका योगदान भविष्य की ओर इशारा करता है. जब आप इसके ग्रीको-रोमन वास्तुकला वाले गलियारों से गुजरते हैं, तो अहसास होता है कि ये सिर्फ दीवारें नहीं, बल्कि शोध, समर्पण और विज्ञान की गवाही देने वाले स्तंभ हैं.
आज भी विज्ञान का अंतरराष्ट्रीय केंद्र
एफआरआई सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया भर के वानिकी वैज्ञानिकों के लिए एक आदर्श स्थान है. 1878 में इंपीरियल फॉरेस्ट स्कूल के रूप में शुरुआत कर, 1906 में इसका पुनर्गठन हुआ और यह फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट बना. 1929 में इसका ऐतिहासिक मुख्य भवन तैयार हुआ, जिसकी खूबसूरती आज भी आंखों को चकाचौंध कर देती है. वर्तमान में यह संस्थान पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और वानिकी के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहा है. ये इमारत आज़ादी से पहले की है, जो आज भी देहरादून की शान मानी जाती है.
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यहां विज्ञान में सांस लेती हैं दीवारें
एफआरआई की गिनती भारत के सबसे बड़े अनुसंधान केंद्रों में होती है. यह संस्थान जलवायु परिवर्तन, कृषि वानिकी, भूमि पुनरुद्धार, नर्सरी प्रबंधन, कीट विज्ञान और वन जैसे क्षेत्रों में बेहतरीन काम कर रहा है. यहां का विशाल हरबेरियम 3.30 लाख से ज्यादा वनस्पति नमूनों का घर है, जिनमें 1300 दुर्लभ प्रजातियां भी शामिल हैं जिन्हें यहीं पहली बार पहचाना गया. सबसे पहला संग्रहित नमूना 1807 में संरक्षित रोजा क्लिनोफिला थारी नामक गुलाब प्रजाति है. हरबेरियम की स्थापना 1908 में हुई थी, जो आज भी वैज्ञानिकों और शोधार्थियों के लिए ज्ञान का खजाना है.
जब वास्तुकला ही बन जाए पहचान
एफआरआई का मुख्य भवन वास्तुकला का बेमिसाल उदाहरण है. ग्रीको-रोमन शैली में बना यह भवन लंदन के बकिंघम पैलेस से भी ज्यादा खूबसूरत बताया गया है. इतिहासकार हेमचंद्र सकलानी कहते हैं कि जब 2013 में प्रिंस चॉर्ल्स एफआरआई आए थे, तब उन्होंने इसकी खूबसूरती की तुलना बकिंघम पैलेस से की. यही वजह है कि स्टूडेंट ऑफ द ईयर, रहना है तेरे दिल में जैसी कई हिट फिल्मों की शूटिंग भी यहां हो चुकी है.
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संग्रहालय नहीं, ज्ञान के मंदिर
एफआरआई में छह प्रमुख संग्रहालय हैं. सामाजिक वानिकी, इमारती लकड़ी, सिल्वीकल्चर, कीट विज्ञान, पैथोलॉजी और गैर-इमारती लकड़ी संग्रहालय. यहां 800 साल पुराने पेड़ के तने से लेकर दुर्लभ कीटों तक, हर कोना जानकारी से भरा है. एफआरआई प्रतिदिन सुबह 9 बजे से शाम 5:30 बजे तक खुला रहता है, दोपहर 1 से 1:30 बजे तक लंच ब्रेक होता है. प्रवेश शुल्क सिर्फ ₹20 है, जबकि पार्किंग के लिए ₹30 और संग्रहालय टिकट अलग से लेना होता है. मार्च से जून का समय यहां घूमने के लिए सबसे उपयुक्त है. देहरादून रेलवे स्टेशन, जौलीग्रांट एयरपोर्ट और एनएच-72 के ज़रिए यह स्थान आसानी से पहुंचा जा सकता है.
वानिकी विरासत का भी है गौरव
एफआरआई सिर्फ एक संस्थान नहीं, भारत की वानिकी विरासत का गौरव है. यह वो जगह है जहां प्रकृति से प्रेम करने वालों, शोधकर्ताओं और पर्यटकों तीनों को एक समान सुकून मिलता है. अगर देहरादून आ रहे हैं, तो एफआरआई को अपनी लिस्ट में सबसे ऊपर रखें, वरना आप कुछ अनमोल मिस कर देंगे.
देहरादून की वादियों में फैले 50 एकड़ के इस भव्य परिसर में स्थित एफआरआई का मुख्य भवन अपनी भव्यता और अनूठी बनावट के लिए प्रसिद्ध है. इसका केंद्रीय टॉवर ग्रीको-रोमन और ब्रिटिश औपनिवेशिक शैली का अद्भुत मेल है. लगभग 2.5 हेक्टेयर में फैला इसका फर्श क्षेत्र इसे देश की सबसे बड़ी शैक्षणिक इमारतों में शुमार करता है.