Public opinion: पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर जुटे कर्मचारी, सरकार के खिलाफ मोर्चा


देहरादून: पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर उत्तराखंड के कर्मचारी लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं. सोमवार को इसी मांग को लेकर देहरादून में एक विशाल महारैली आयोजित की गई, जिसमें राज्यभर के शिक्षक और विभिन्न विभागों के कर्मचारी शामिल हुए. रैली के दौरान कर्मचारियों ने सचिवालय का घेराव करते हुए परंपरागत ढोल-दमाऊ बजाकर सरकार को “जगाने” का प्रयास किया. इस महारैली का नेतृत्व राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा ने किया, और कर्मचारियों ने स्पष्ट किया कि यदि 2027 से पहले पुरानी पेंशन स्कीम बहाल नहीं की जाती, तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे.

पुरानी पेंशन की मांग का कारण
कर्मचारियों ने 1 जनवरी 2004 को लागू की गई नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) को “काला कानून” कहकर अपने हितों के खिलाफ बताया. उनका कहना है कि पुरानी पेंशन स्कीम से उन्हें वित्तीय सुरक्षा मिलती थी, जो नई योजना में नहीं है. महारैली में उत्तराखंड के विभिन्न जिलों जैसे पौड़ी, श्रीनगर, पिथौरागढ़, चंपावत, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, हल्द्वानी, और उधमसिंह नगर से भारी संख्या में कर्मचारी पहुंचे.

कर्मचारियों की राय
देहरादून के कर्मचारी बी. आर. जोशी ने कहा कि केंद्र सरकार की नई पेंशन नीति से कर्मचारी असंतुष्ट हैं. प्रीतम सिंह नेगी ने सरकार के 2004 में किए गए दावे पर सवाल उठाते हुए कहा कि पेंशन कर्मचारियों का अधिकार है और सरकार को इसे बहाल करना होगा. अभिषेक दीक्षित ने बताया कि पुरानी पेंशन स्कीम में गारंटी के साथ जीपीएफ का प्रावधान था, जो नई योजना में नहीं है, जिसके चलते कर्मचारी वित्तीय जरूरतों के समय लोन लेने पर मजबूर हैं. रेनू ने विशेष रूप से महिला कर्मचारियों के संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें अपनी नौकरी में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, और सरकार की ऐसी नीतियों से मनोबल गिरता है.

नेताओं और कर्मचारियों के लिए अलग मापदंड
आलोक और दीपक जैसे कई कर्मचारियों ने सरकार की नई पेंशन स्कीम पर दोहरे मापदंड का आरोप लगाया. उन्होंने सवाल उठाया कि अगर एनपीएस इतनी ही लाभकारी है, तो इसे नेताओं पर क्यों लागू नहीं किया गया? दीपक ने बताया कि मंत्री, विधायक और सांसदों को कुछ ही समय सेवा देने के बाद भी पेंशन मिलती है, जबकि कर्मचारियों के साथ भेदभाव किया जा रहा है. रिटायर्ड कर्मचारी कुलदीप कंडारी ने कहा कि वह खुद पुरानी पेंशन योजना के लाभार्थी हैं, लेकिन दूसरों के लिए भी यह आंदोलन कर रहे हैं, क्योंकि यह कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षित भविष्य का आधार था.

केदारनाथ उपचुनाव में प्रभाव की संभावना
कुलदीप कंडारी और अन्य कर्मचारियों ने चेतावनी दी कि अगर सरकार कर्मचारियों के हित में निर्णय नहीं लेती है, तो इसका असर केदारनाथ उपचुनाव और भविष्य के चुनावों में देखने को मिल सकता है. कर्मचारियों का कहना है कि नई पेंशन योजना पूरी तरह से शेयर बाजार पर आधारित होने के कारण अनिश्चित है, और इस प्रकार की ठेकेदारी प्रथा को कर्मचारी स्वीकार नहीं करेंगे.

Tags: Dehradun news, Local18, Public Opinion

By