झालावाड़। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव के किसान की बेटी ऋचा तोमर के आईपीएस आॅफिसर बनने की कहानी काफी संघर्षों भरी रही है लेकिन यही कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी है। ऋचा तोमर ने जीवन में आई सभी चुनौतियों का डटकर सामना किया। आज उनकी सफलता की कहानी से कई लोग सबक ले रहे हैं और हम सभी को सबक लेना चाहिए कि, जीवन में मुश्किलें हमें कमजोर करने के लिए नहीं, बल्कि मजबूत बनाने के लिए आती हैं। आईपीएस ऋचा तोमर 2016 बैच की आईपीएस हैं और राजस्थान कैडर से आती हैं, ऋचा फिलहाल प्रदेश के झालावाड़ जिले की एसपी हैं। जहां उनके काम की हर कोई तारीफ करता नजर आता है। आइए विश्व महिला दिवस के अवसर पर जानते हैं इस महिला आॅफिसर के संघर्ष की प्रेरणादायक कहानी। ऋचा यूपी के बागपत जिले के हसनपुर जिवानी गांव से आती हैं। उनके पिता किसान हैं और उनके कुल 6 भाई बहन हैं, जिनमें वे चौथे नंबर पर हैं। उनकी सभी बहनें उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और भाई ने भी गेट परीक्षा पास की है। ऋचा स्कूली दिनों से ही पढ़ाई में काफी तेज थीं, उनकी शुरूआती पढ़ाई-लिखाई बागपत शहर क्यों सरकारी विद्यालयों से ही हुई है, इसके बाद उन्होंने चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी, मेरठ से बीएससी किया है जिसमें वे टॉपर रही, वहीं उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन में माइक्रो बायोलॉजी से एमएससी किया। ऋचा तोमर ने नेट परीक्षा और जेआरएफ भी पास किया, रिचा ने वर्ष 2015 में यूपीएससी परीक्षा पास की थी, लेकिन उस वक्त उनका तीन महीने का बच्चा था, जिसे छोड़कर वह ट्रेनिंग पर नहीं जा सकती थीं, बच्चे के 1 साल होने पर वह उसे अपने सास-ससुर के पास छोड़कर 2016 में वह ट्रेनिंग के लिए गईं। ऋचा ने बताया कि बच्चे से दूर होना, उनके लिए काफी मुश्किल भरा रहा था, लेकिन उन्होंने अपनी ट्रेनिंग सफलतापूर्वक पूरी की और वह उस बैच के टॉपर्स में से एक रहीं। ट्रेनिंग के बाद उन्हें राजस्थान कैडर अलॉट किया गया। ऋचा के पति भी दिल्ली में असिस्टेंट कमिश्नर आॅफ पुलिस हैं।
जिंदगी एक हॉलिस्टिक पैकेज है
एनडीटीवी से खास बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि जिंदगी एक हॉलिस्टिक पैकेज है जिसमें संपूर्ण जा चुकी हुई है ईश्वर सबको बराबर मौके देता है। उन्होंने कहा कि किसी को कहीं कुछ ज्यादा मिल जाता है तो दूसरी जगह कमी हो जाती है इसी प्रकार से किसी और व्यक्ति को वहां ज्यादा मिल जाता है। जहां से आपको काम मिला है लेकिन जहां आपको ज्यादा मिला है वहां से उसको कम मिला होता है।
ऐसे आया अलग पहचान बनाने का ख्याल
उन्होंने बताया कि जब वह छोटी थी और अपने गांव के आसपास के लोगों से मिलती थी तो लोग अक्सर पूछते थे कि तुम कौन से नंबर की हो? यानी की लोग उन्हें नाम से नहीं पहचान कर उनके माता-पिता की वह किस नंबर की संतान है इससे पहचाना करते थे। इसको देखते हुए ऋचा तोमर ने अपने मन में यह ठान लिया कि वह अब अलग पहचान बनाएंगी ताकि लोग उनको उनके नाम से जाने और उनके परिवार को अलग पहचान मिले।
पहली ही बार में क्लियर किया यूपीएससी
ऋचा तोमर ने बताया कि उनकी लाइफ स्टाइल में यह संभव नहीं था कि वह लगातार कहीं रहकर कोचिंग करें और महंगी पढ़ाई का खर्च उठा सकें, ऐसे में उनके पिता के कुछ परिचित व्यक्ति जो इस लाइन में पहले निकल गए थे उनसे बातचीत करके उन्होंने गाइडेंस ली और मन लगाकर पढ़ते हुए पहले ही बार में यूपीएससी क्लियर कर लिया। उन्होंने कहा कि अगर वह पहली बार में क्लियर नहीं कर पाती तो आगे उनके लिए टिके रहना बड़ा ही मुश्किल हो जाता।
बच्चे के जन्म के तुरंत बाद ट्रेनिंग में शामिल हुई
आईपीएस ऋचाा तोमर ने बताया कि जब उनका यूपीएससी में सिलेक्शन हुआ उससे पहले ही उनकी शादी हो चुकी थी और वह गर्भवती थीं, ऐसे में वर्ष 2015 में वह प्रेगनेंसी के चलते 15 बैच की ट्रेनिंग के लिए नहीं जा पाई और बच्चे को जन्म देने के बाद 2016 बैच की ट्रेनिंग में उनका जाना तय हुआ। लेकिन तब उनका बेटा कुछ ही महीना का था और वह फिजिकली भी पूरी तरह फिट नहीं थी। ऐसे में उनका ट्रेनिंग के शुरूआती दौर में बेहद तकलीफों का सामना करना पड़ा किंतु उन्होंने अपने संघर्ष को लगातार जारी रखा और मुश्किलें पार करती हुई सफलतापूर्वक ट्रेनिंग पूरी की ओर टॉपर रहीं।
झालावाड़ को दी बेहतर कानून व्यवस्था
आईपीएस ऋचा तोमर को लगभग 2 साल का समय झालावाड़ एसपी बने हुए हो गया है जहां पर उन्होंने खास तौर पर कम्युनिटी पुलिसिंग को काफी बल दिया है तथा जिले को बेहतरीन कानून व्यवस्था देने की पूरी कोशिश की है जिसमें वह कामयाब भी रही है। इसके अलावा उन्होंने कई बेहद पेचीदा आपराधिक मामलों को भी बड़ी ही सरलता से सुलझाया है, जो उनकी खास उपलब्धि है। झालावाड़ जिला मध्य प्रदेश की सीमा पर है ऐसे में यहां कई तरह के अपराध होते हैं यहां विशेष तौर पर तस्करी के मामले बहुत ज्यादा होते हैं जिन पर वह काफी हद तक शिकंजा करने में कामयाब रही है।