कागजों में खेल मैदान, हकीकत की जमीन से नदारद

कोटा। एक विद्यार्थी को स्कूल में जितनी कक्षा और प्रयोगशालाओं की आवश्यकता होती है उतनी ही खेल के मैदान की होती है। जिससे विद्यार्थी का शैक्षणिक विकास के साथ साथ शारीरिक विकास हो सके और उसकी प्रतिभा निखर सके। लेकिन कोटा के अधिकतर निजी विद्यालयों में ना तो खेल मैदान है और ना ही उसके लिए जगह। इन विद्यालयों के पास कोई विकसित खेल मैदान ना होने के बावजूद भी मान्यता मिली हुई है। ऐसे में विद्यार्थियों की न कोई शारीरिक गतिविधि होती है और ना ही कोई खेलकूद की कोई गतिविधि। वहीं शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार खेल का मैदान होने पर ही स्कूल को मान्यता दी जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि जिन स्कूलों के पास खेल के मैदान नहीं है उन्हें मान्यता कैसे मिल सकती है।

कोटा के सैंकडों विद्यालयों में नहीं खेल मैदान
शहर के सैंकडों गैर सरकारी विद्यालयों में खेल मैदान नहीं है। इनमें प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक विद्यालय भी शामिल हैं। दरअसल किसी भी शैक्षणिक संस्था में विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए पर्याप्त कक्षाओं के साथ पुस्तकालय, प्रयोगशाला, इंडोर और आउटडोर खेल के लिए उपयुक्त मैदान होना जरुरी है। लेकिन कोटा में सैंकड़ों स्कूल ऐसे हैं जो मात्र एक बिल्डिंग में ही संचालित किए जा रहे हैं। जिनमें ना तो खेल के मैदान हैं और ना ही पुस्तकालय मौजूद हैं। 

कागजों में ही चल रहे खेल मैदान
शिक्षा विभाग के नियमानुसार शिक्षा निदेशालय से संबंध सभी स्कूलों में शिक्षा का अधिकार के तहत खेल मैदान होना आवश्यक है। साल 2011 में लागू हुए शिक्षा के अधिकार के तहत प्रावधान था की विद्यार्थी अगर किसी निजी स्कूल में प्रवेश ले रहा है तो उसके लिए पुस्तकालय और खेल मैदान की सुविधा होना आवश्यक है। जिससे बच्चे को शिक्षा ग्रहण करने के साथ खेलकूद में भी अपनी योग्यता निखारने का मौका मिले। लेकिन सैंकडों विद्यालयों में खेल के मैदान मात्र कागजों में ही मौजूद हैं उनका वास्तविकता से काई लेना देना नहीं है।

इनका कहना है
स्कूलों में खेल के मैदान के लिए पर्याप्त स्थान होने के बाद ही मान्यता दी जाती है। पूरानी मान्यता वाले स्कूलों को छूट दी जाती है कि वो किराये पर मैदान ले सकते हैं। किसी भी स्कूल में खेल मैदान होना आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं है तो वो गलत है।
– कृष्ण कुमार शर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक, कोटा

क्या कहते हैं नियम
शिक्षा विभाग की ओर से मान्यता प्राप्त करने के लिए किसी भी गैर सरकारी विद्यालय के पास स्कूल संचालन करने की इमारत होने के साथ खेल मैदान भी होना आवश्यक है। जिसमें शहरी क्षेत्र के विद्यालयों में कम से कम 500 वर्ग मीटर और ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में 2 हजार वर्ग मीटर का खेल मैदान होना आवश्यक है। वहीं स्वयं का खेल मैदान न होने की दशा में विद्यालय के 100 मीटर दायरे के भीतर किराये से लिया हुआ मैदान होना आवश्यक है। ये शर्तें पूरी होने के बाद ही किसी विद्यालय को मान्यता प्राप्त हो सकती है। 

अभिभावकों का कहना है
बच्चे स्कूल जाएं तो शिक्षा के साथ में दूसरी गतिविधियां भी संचालित होनी चाहिए लेकिन बच्चों के स्कूल में खेल का कोई मैदान नहीं है। ऐसे में बच्चों के खेलकूद से जुड़ी गतिविधियां नहीं हो पाती हैं।
– राकेश गुर्जर, प्रेमनगर

स्कूलों में खेल के मैदान होना चाहिए इसके लिए कई बार स्कूल प्रशासन से भी बोला लेकिन जगह नहीं होने का बहाना बना देते हैं। अब ऐसे में बच्चा किसी खेल में आगे बढ़ना चाहे तो उसे स्कूल के बाद खेल की तैयारी करनी होती है।
– बृजमोहन शर्मा, तलवंडी

स्कूल में खेल मैदान नहीं है ऐसे में हमें खेलने के लिए दूसरी जगह जाना पड़ता है। अगर स्कूल में ही खेल मैदान हो तो हमें दूसरी जगह नहीं जाना पड़े। किसी तरह की प्रतियोगिता भी होती है तो उसके लिए जगह ढूंढनी पड़ती है।
– आशिष महावर, गोविंद नगर

स्कूल प्रशासन फीस में खेलकूद की गतिविधियों का शुल्क जोड़ते हैं लेकिन खेलकूद के मैदान जैसी कोई सुविधा नहीं देते हैं ऐसे में हमें शुल्क देने के बाद भी खेलने के लिए इधर उधर भागना पड़ता है।
– रोहन प्रजापति, इंद्रा गांधी नगर

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