कोटा। दैनिक नवज्योति कार्यालय में प्रतिमाह होने वाली परिचर्चा की श्रंखला के तहत मंगलवार को व्हाई चाइना इज फॉर बेटर देन इंडिया इन स्पोर्ट्स विषय पर चर्चा का आयोजन किया गया। इस दौरान डायरेक्टर स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी ऑफ कोटा, फुटबॉल कोच, वलर्ड यूथ बॉक्सिंग चैम्पियन, इंटरनेशनल मेडलिस्ट खिलाड़ी, स्वीमिंग, फुटबॉल, एथलीट, वुशू, कुश्ती, तीरंदाजी से जुड़े खेल विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। परिचर्चा में मुख्य रूप से खेलों में राजनीति बंद करने, स्कूली शिक्षा में प्राथमिक स्तर से खेल अनिवार्य करने, खेल का बजट बढ़ाने, राजनीतिक हस्तक्षेप बंद करने, खेल संघों में केवल खिलाड़ियों को पदाधिकारी बनाने, निकाय स्तर पर मिलने वाली सुविधा खिलाड़ियों तक पहुंचने, भ्रष्टाचार रोकने जैसे मुद्दों पर खुलकर चर्चा की गई। लोगों ने माना कि खिलाड़ियों के जज्बे और हुनर में कमी नहीं है। कमी व्यवस्थागत है। यदि केन्द्रीयकृत व्यवस्था के तहत लाइबिलिटी तय हो, वैज्ञानिक तरीके से ग्रास रूट पर काम हो तो इंडिया में ओलंपिक मेडल की झड़ी लग सकती है।
परिवारों में खिलाड़ी तैयार करने का बने कल्चर
केवल सरकार के भरोसे अच्छे खिलाड़ी तैयार किया जाना संभव नहीं है। सरकार के भरोसे तो खिलाड़ियों की छोटी-छोटी जरूरतों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। खेल मैदान तक की व्यवस्था नहीं हो पाती। हैमर थ्रो के लिए कोटा में मैदान तक नहीं है। जिससे खिलाड़ियों को परेशान होना पड़ रहा है। परिवारों में बचपन से ही बच्चों को खेल के प्रति समर्पण का कल्चर बनाने की आवश्यकता है। चीन में खेल का कल्चर है। वहां पढ़ाई के साथ खेल को भी प्राथमिकता देने से वह भारत से काफी आगे है। साथ ही भामाशाहों को अन्य आयोजनों के स्थान पर खेल में आर्थिक सहयोग करना चाहिए।
– श्याम बिहारी नाहर, वरिष्ठ गोला फेंक खिलाड़ी
नींव मजबूत करनी होगी
भारत में खिलाड़ी द्वारा बेहतर प्रदर्शन करने और मैडल जीतने के बाद उस पर सरकार ध्यान देती है। जबकि अच्छा खिलाड़ी तैयार करने के लिए उसकी नींव मजबूत होना जरूरी है। सरकार को चाहिए कि वह खिलाड़ियों को तैयार करते समय उन्हेंं सुविधाएं दें। चीन में बचपन से ही बच्चों को खेल से संबंधित सुविधाएं देने से वे बेहतर प्रदर्शन कर पाते है। एक तरफ तो खिलाड़ियों को खेल सामग्री के लिए संघर्ष करना पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ नगर निगम द्वारा पार्षदों को हर साल एक लाख रुपए की खेल सामग्री दी जा रही है। यह सामग्री पार्षदों को नहीं देकर वास्तविक खिलाड़ियों को दी जानी चाहिए। जिससे उनका सही उपयोग हो सके।
– महिपाल सिंह,अन्तरराष्ट्रीय खिलाड़ी वुशू, जूनियर कमिशन आफिसर(आर्मी)
बिना सुविधाएं अच्छा खिलाड़ी मुश्किल
खेलों में भारत की तुलना चीन से की तो जाती है। लेकिन वह इस क्षेत्र में भारत से काफी आगे है। भारत में बिना सुविधा के ही अच्छा खिलाड़ी तैयार करना चाहते है। यह संभव नहीं है। यहां तो कोच व खिलाड़ियों को कई-कई साल तक यात्रा भत्ता व भोजन भत्ता तक नहीं मिलता। चीन में खिलाड़ी तैयार करते समय ही उन्हें सभी सुविधाएं दी जाती है। जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन के लिए बचपन से ही खेल व खिलाड़ी के स्तर को सुधारना होगा। इसके लिए सुविधाएं विकसित करने की जरूरत है।
– कुशलपाल प्रजापति, वेटलिफ्टििंग उपाध्यक्ष राजस्थान स्टेट वेट लिफ्टििंग संघ
पढ़ाई और खेल में सामंजस्य बनाना होगा
भारत में पढ़ाई पर अधिक जोर दिया जाता है खेलों पर नहीं। बचपन में यदि बच्चे खेल पर ध्यान देते हैं तो उन्हें स्कूल में अनुपस्थित होने व पढ़ाई में पिछड़ने का डर रहता है। शिक्षक और परिवार को बच्चों में खेल भावना जागृत करने के लिए शिक्षा के साथ खेलों में सामंजस्य बैठाना होगा। खेलों में अनुशासन व तपस्या तो जरूरी है। साथ ही खेलों को राजनीति से मुक्त रखना होगा। जितने अधिक टूर्नामेंट होंगे खिलाड़ियों को उतना अधिक अभ्यास का मौका मिलेगा। तभी वह अन्य देशों में जाने पर वहां के वातावरण में ढल पाएंगे।
– हरीश शर्मा, सचिव जिला कुश्ती संघ
सब बच्चों को डॉक्टर इंजीनियर बनाना चाहते हैं
बचपन से ही खिलाड़ी बनने का शौक रहा है। परिवार व कोच का सहयोग मिला तो राष्ट्रीय व अंतर राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन करने का मौका मिला। भारत में हर माता पिता बच्चोंको डॉक्टर इंजीनियर बनाना चाहते हैं। जबकि खिलाड़ी बनकर भी बच्चे देश व परिवार का नाम रोशन कर सकते है। कजाकिस्तान की खिलाड़ी से कमजोर रही थी। अब उसी से मुकाबला जीतना लक्ष्य है। जो कमियां रही हैं उन्हें सुधारा जा रहा है। गोल्ड मैडल लाना ही लक्ष्य है।
– महक, वर्ल्ड यूथ बॉक्सििंग चैम्पियनशिप प्लेयर
खिलाड़ियों को तकनीकी दक्षता की जरूरत
चीन में खिलाड़ियों को छात्रवृत्ति व प्रोत्साहन अधिक मिलता है। जबकि भारत में ऐसा नहीं होने से खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन में पिछड़ते हैं। परिवार के सहयोग व कोच के मार्ग दर्शन में नियमित अभ्यास कर रही है। इसके लिए टीवी व मोबाइल से दूर रहते है। ईरान से मुकाबले में तकनीकी रूप से कमी के चलते हार गई थी। लेकिन अब उसी से मुकाबला करना है। साथ ही नेशनल खेलों में गोल्ड मैडल जीतना लक्ष्य है।
– दिव्यांशी, वर्ल्ड चैम्पियनशिप ब्रांज मैडलिस्ट वुशु प्लेयर
बीस साल से कोच की भर्ती नहीं निकली
गुरु के बिना ज्ञान नहीं है। बिना कोच के किसी भी खेल का विकास नहीं हो सकता है। पार्ट टाइम कोच से आप बेहतर खेल प्रदर्शन की उम्मीद कैसे रख सकते हंै। कोटा में विभिन्न खेलों के कोई स्थाई कोच नहीं है। वर्तमान में पार्ट टाइम कोच रखने का चलन चल रहा है। जिससे खेल का ठीक से विकास नहीं हो पा रहा है। जेकेलोन मैदान पर किक्रेट अधिकारी ने अपना आॅफिस चला रखा है। हर खेल के लिए अलग अलग मैदान की आवश्कता है। सरकार पीटीआई, कोच की भर्ती निकाले। जितने ज्यादा कोच होंगे खेल में निखार उतना अच्छा आएगा। खिलाड़ियों को प्रोत्साहन राशि समय पर मिले। खिलाड़ियों के लिए ट्रेन में समय पर रिजर्वेशन तक नहीं मिलता। किसी भी प्रतियोगिता से पहले प्रशिक्षण लगें जिससे खिलाड़ी एक दूसरे को समझ सकें। सालभर के लिए 200 फुटबॉल की मांग करने पर 20 फुटबॉल मिलते हैं। ऐसे में कैसे वर्ल्ड क्लॉस खिलाड़ी तैयार होंगे।
– मधु चौहान, फुटबॉल कोच, पूर्व जिला खेल अधिकारी
लाइबिलिटी और एकाउन्टेबिलिटी तय होना जरूरी
खेल में खिलाड़ी से लेकर कोच तक की जवाबदेही तय की जाए। खेल में वैज्ञानिक तकनीक के साथ बुनियादी ढ़ाचे को ठीक करने की आवश्यकता है। केंद्रीकृत खेल प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है। पूरे सिस्टम में खिलाड़ी से लेकर कोच और प्रशासनिक पद पर पूर्व खिलाड़ी कोच होंगे तभी खेल बेहतर स्थिति में आ सकता है। हम चाइना की बराबरी तभी कर पाएंगे जब हमारे खेलों पर जमीनी स्तर काम होगा। बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ स्पोर्ट्स को अनिवार्य किया जाना चाहिए। अभी 11 वीं 12 वीं स्पोर्ट विषय को अनिवार्य कर रखा है लेकिन यह किताबी ज्ञान तक ही सीमित है। मैदान तक नहीं उतरा है। हमारे यहां अच्छा इंन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है। कल्चर तैयार करना होगा। बोर्न खिलाड़ियों को बचपन से खोजना होगा। यह कोच की जिम्मेदारी होना चाहिए। जरूरत हो तो विदेशी कोच नियुक्त किए जाने चाहिए। तभी हम चाइना से प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे।
– विजय सिंह, स्पोर्ट्स डायरेक्टर कोटा यूनिवर्सिटी
तकनिकी कमजोरी दूर करने के लिए कोच ही नहीं
चाइना में बच्चों को बचपन से ही खेल के लिए तैयार किया जाता है। उनकी क्षमता के अनुसार उस खेल में डाला जाता है। इसमें सरकार से लेकर अभिभावक में खेल को लेकर पूरा कल्चर है। हमारें यहां खेल को सेकंड्री रखा गया है। बच्चों को बचपन से तैयार करना होगा। स्कूल रूट पर ही बच्चों को तैयार करना होगा। सरकारी योजनाएं खिलाड़ियों तक नहीं पहुंच पाती है। मेडल लाने पर प्रोतसाहन राशि दी जाती है लेकिन यहां 2017 से लेकर 2024 तक अभी खिलाड़ियों को प्रोत्साहन राशि नहीं मिली है। 2019 से 2024 तक नेशनल खिलाड़ियों की पैसा बाकी चल रहा है। यह पैसा मिले तो बच्चों अच्छी खुराक और अभ्यास के संसांधन उपलब्ध हो सकेंगे। बच्चों को माता पिता डॉक्टर इंजीनियर बनाने की सोच रखते है। खेल के प्रति अभी लोगों में काफी उदासीनता है। हमारे यहां अच्छे कोच, मैदान और खेल सामग्री का अभाव है। यहां वुशू के लिए ना ही कोई मैदान ना ही सुविधाएं उसके बावजूद कोटा के खिलाड़ी नेशनल व वर्ल्ड चैपियन बन रहे हैं यह उनके माता पिता और उनका व्यक्तिगत मेहनत है। हमारे देश में मेडल लाने के बाद ही सुविधाएं शुरू होती ऐसे में बच्चों अच्छी खुराक और संसाधन के लिए स्वयं ही संघर्ष करना होता है।
– अशोक गौतम, वुशू कोच,नेशनल खिलाड़ी
सभी खेलों के कोच एक प्लेटफार्म आकर समन्वय करें
खिलाड़ी से लेकर कोच तक जमीनी स्तर पर बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन संसाधनों के अभाव में खिलाड़ी आगे नहीं बढ़ पा रहे है। बच्चे के पहले कोच माता पिता होते हैं , वो ही बच्चों को मैदान तक ला सकते हंै। हमें संसाधनों के लिए सरकार पर ही निर्भर नहीं रहना है। लोगों को भी खेल के प्रति जागरूक कर बच्चों को मैदान तक लाना है। अपने प्रदर्शन से सरकार को संसाधन देने के लिए मजबूर करना होगा। तीरंदाजी में तीन साल से लेकर 15 साल के बच्चे तैयार किए जा रहे हैं। 2032 के ओलपिंक में कोटा का बच्चा तीरंदाजी में गोल्ड लेकर आएगा ऐसी तैयारी अभी से कर रहे हैं। कोटा में तीरंदाजी के लिए कोई सुविधा नहीं ,निजी स्तर पर ही व्यवस्थाएं करनी पड़ रही है। बच्चों को प्रोत्साहन राशि समय पर मिले। खेलों में सरकारी व्यवस्था ठीक नहीं। शूटिंग के लिए हाल ही में हमने शिक्षा मंत्री से उद्घाटन कराकर शुरुआत की तो आदेश ऐसा हुआ कि तीरंदाजी का मैदान ही छिन गया।
– बृजपाल सिंह, तीरंदाजी कोच पंचमुखी स्पोर्ट्स फेडरेशन
स्वीमिंग के लिए कोटा में कोच ही नहीं
कोटा में बेहतर खिलाड़ी तैयार करने के लिए यहां ना तो पूरे संसाधन ना ही अच्छे कोच है। स्वींमिग के प्रशिक्षण के लिए बैगलूर जाना पड़ता है या जयपुर, कोटा में पूरे संसाधन नहीं है। खेल में राजनैतिक दखल अंदाजी के साथ भ्रष्टाचार इतना व्याप्त है कि योग्य खिलाड़ी आगे नहीं बढ़ पाते हैं। खिलाड़ी उम्र को लेकर भी काफी गडबडियां की जाती है। खेलों में पारदर्शिता बिल्कुल खत्म हो गई है। भाई भतीजावाद और पैसा हावी है। कई खिलाड़ी उम्र का डबल प्रमाण पत्र बनाकर रखते हैं ऐसे में योग्य खिलाड़ी ओवर एज होकर बाहर हो जाता है। खेलों का अधिक से अधिक आयोजन हो जिससे खिलाड़ियों अधिक अभ्यास का मौका मिले। खेल में राजनीति नहीं होनी चाहिए। जनप्रतिनिधियों की खेलों में दखल अंदाजी बंद होगी तभी बेहतर खिलाड़ी तैयार होंगे । स्टेडियम का उपयोग स्टेडियम के लिए हो यहां सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं हो। स्टेडियम में प्रवेश के लिए पास जारी हो ,साथ ही एक न्यूनतम प्रवेश राशि रखी जाए जिससे मैदान खराब नहीं होंगे । खिलाड़ियों को अभ्यास के लिए पूरा समय मिलेगा।
– प्रमोद यादव, सचिव स्वीमिंग
मुख्य बिंदू
– स्कूलों में खेल शिक्षा अनिवार्य की जाए।
– खेलों बेहतर प्रदर्शन के लिए जवाबदेही तय हो।
– हर खेल के स्थाई कोच नियुक्त किए जाए।
– खेलकूद का मूलभूत ढ़ाचा बेहतर किया जाए।
– खिलाड़ियों को प्रोत्साहन राशि का समय पर भुगतान किया जाए।
– पर्याप्त मात्रा पर समय पर खेल सामग्री उपलब्ध कराई जाए।
– खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी में प्राथमिकता के साथ भर्ती करें।
– पार्ट टाइम कोच की जगह स्थाई कोच की नियुक्ति की जाए।
– विदेशी कोच की नियुक्ति हो।
– पूर्व खिलाड़ियों को खेल निकाय का नेतृत्व करने का अवसर मिले।
– खेलों में राजनैतिक दखल बंद होना चाहिए।
– स्टेडियम में खिलाड़ियों के लिए ही प्रवेश हो इसके लिए पास बनाए।
– पार्षद को मिलने वाली खेल सामग्री कोच मिले तो खिलाड़ियों खेल सामग्री परेशानी खत्म होगी।
– खेलगांव का निर्माण हो जिसमें सभी खेलो एक ही स्थान पर खेला जा सकें।
– खेल में अनुशासन जरूरी है।
– खेलों में बढ़ते भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे इसके लिए राजैनिक हस्तेक्षप बंद हो।
– स्टेडियम में स्थानीय खिलाड़ियों के प्रवेश पास बने जिसका शुल्क निर्धारित हो, जबकि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों का प्रवेश निशुल्क हो। प्रवेश पास की राशि से स्टेडियम का रख रखाव भी हो सकेगा।
– स्टेडियम का उपयोग खेल के लिए हो सार्वजनिक कार्यक्रम के लिए नहीं हो
– प्रशिक्षण के साथ वैज्ञानिक तकनीक का समावेश हो।
– केंद्रीकृत खेल प्रणाली होनी चाहिए।
– खेल प्रशासक की जवाबदेही तय होनी चाहिए। ल्ल एथलिट व संघ के बीच एकता बननी चाहिए।
– छोटी उम्र से ही बच्चों में खेल से जोड़ा जाए।
– खिलाड़ियों की कमजोरी पर काम होना चाहिए।