नोएडा. कहते हैं जो डटकर अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज मजबूत करता है आखिर में उसकी जीत जरूर होती है. एक ऐसा ही मामला उत्तराखंड से सामने आया है. जेरॉल्ड जॉन नाम के व्यक्ति ने अपने अधिकार के लिए 30 साल तक संघर्ष किया. बात 1989 की है, जब 24 वर्षीय जॉन ने अखबार के एक विज्ञापन को देखने के बाद नौकरी के लिए आवेदन किया था. लेकिन इंटरव्यू क्लियर और मेरिट लिस्ट में अव्वल आने के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिली. जॉन ने देहरादून में सरकारी सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान, सीएनआई बॉयज इंटर कॉलेज में कॉमर्स शिक्षक के पद के लिए आवेदन किया था.
नौकरी की सारी प्रक्रिया पार करने के बाद भी जब उन्हें नौकरी नहीं मिली तब उन्होंने 1990 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया. साल 2000 में उत्तराखंड के यूपी से अलग होने के बाद, मामला नैनीताल में हाईकोर्ट को स्थानांतरित कर दिया गया. इसके बाद भी उन्होंने अपने हक की लड़ाई जारी रखी.
आखिरकार, उम्र के 55वें पड़ाव पर उन्हें न्याय मिला और उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया. इतना नहीं कोर्ट ने उन्हें स्कूल में नियुक्त करने के साथ-साथ मुआवजे के रूप में 80 लाख रुपये देने का भी आदेश दिया है. इस राशि में से 73 लाख रुपये उत्तराखंड सरकार ने जॉन को कुछ महीने पहले दिए, जबकि बाकी राशि यूपी सरकार को देनी होगी. बता दें कि सबसे वरिष्ठ शिक्षक होने की वजह से जॉन अब स्कूल के कार्यवाहक प्रिंसिपल भी हैं.
जॉन ने अपने संघर्ष को किया याद
अपने लंबे संघर्ष को याद करते हुए जेरॉल्ड जॉन ने एक मीडिया साइट को बताया कि इंटरव्यू क्लियर और मेरिट लिस्ट में टॉप आने के बाद भी जब उन्हें नौकरी नहीं मिली तो वे काफी हैरान थे. इसके बाद जब अधिकारियों से पूछा कि मुझे क्यों रिजेक्ट किया गया तो उन्होंने कहा कि सेलेक्शन के लिए उम्मीदवार के पास स्टेनोग्राफी कौशल होना चाहिए. हालांकि नौकरी के लिए आवश्यक मानदंडों में स्टेनोग्राफी की बात नहीं लिखी गई थी. मुझे शक हुआ कि जिस उम्मीदवार को चुना गया है उसने अधिकारियों के साथ किसी तरह की साठगांठ की है. इसके बाद ही मैंने मामले को कोर्ट में ले जाने का फैसला किया.
उन्होंने बताया कि साल 2000 में इस मामले में काफी कम प्रगति हुई. इसके बाद 2007 में उत्तराखंड HC के एकल पीठ ने जॉन के खिलाफ फैसला सुनाया. तब उन्होंने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. पूर्व केंद्रीय मंत्री और वकील सलमान खुर्शीद ने उनका केस फ्री में लड़ा. जॉन ने बताया खुर्शीद ने इस पूरे मामले को वास्तविक रूप से देखा. हम दोनों फर्रुखाबाद से हैं इसलिए उन्होंने कोई शुल्क नहीं लिया.
पूरा मामला 2007 से 2010 तक SC में रहा. इसके बाद कोर्ट ने हमें सिंगल बेंच के बजाय HC की डबल बेंच के सामने अपील करने को कहा. मामला उत्तराखंड HC में वापस जाने के 10 साल बाद एक डबल बेंच ने दिसंबर 2020 में जॉन के पक्ष में फैसला सुनाया.
इस साल जनवरी में, जॉन को CNI बॉयज इंटर कॉलेज में कक्षा 11 और 12 के लिए वाणिज्य शिक्षक नियुक्त किया गया. अप्रैल में प्रिंसिपल के सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें कार्यवाहक प्राचार्य भी बनाया गया. जॉन ने बताया कि उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि मुझे 1989 से अर्जित वेतन का लगभग 60% दिया जाना चाहिए. यह लगभग 80 लाख रुपये था. अगर मैंने काम किया होता, तो मुझे कुल 1.25 करोड़ रुपये मिलते.
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