बरहेट:
झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Elections 2024) में बरहेट (Barhait Seat) सबसे हॉट सीट है. यह सीट परंपरा और बदलाव के बीच झूल रही है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) यहां से दो बार चुनाव जीत चुके हैं. इस बार उन्हें भाजपा के युवा उम्मीदवार गमलियाल हेंब्रम (Gamaliel Hembram) की चुनौती का सामना कर रहे हैं. यह मुकाबला सिर्फ राजनीतिक नहीं है, बल्कि यह आदिवासी पहचान, विरासत और आकांक्षाओं का प्रतिबिंब भी है.
इतिहास से जुड़ी रणभूमि
संथाल परगना के ऐतिहासिक क्षेत्र में स्थित बरहेट का सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व गहरा है. इसे दामिन-ए-कोह या “पहाड़ की गोद” के नाम से भी जाना जाता है. 1832 में ब्रिटिश सरकार ने यहां संथालों को खेती के लिए बसने की अनुमति दी. यहीं 1855 में ब्रिटिश शोषण के विरोध में “हूल” या संथाल विद्रोह हुआ. इस विद्रोह का नेतृत्व सिद्धो, कान्हू, चांद और भैरव जैसे महान संथाल क्रांतिकारियों ने किया.
बरहेट एक अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है. यहां पर 71 फीसदी मतदाता संथाल और पहाड़िया जनजातियों से हैं, जबकि 10 फीसदी मुस्लिम मतदाता भी हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का धनुष-बाण चुनाव चिह्न यहां के आदिवासी समुदाय के लिए उनकी पहचान और प्रतिरोध का प्रतीक है, लेकिन इस बार चुनाव में इस परंपरागत निष्ठा पर सवाल उठ रहे हैं.
उम्मीदवार: हेमंत बनाम हेंब्रम
हेमंत सोरेन राज्य के नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. उन्होंने इस चुनाव प्रचार में बरहेट में सीमित समय बिताया है. फिर भी उनका आत्मविश्वास अडिग है. उन्होंने कहा, “सीमित संसाधनों के बावजूद लोग हमारे साथ हुए अन्याय को समझते हैं. वे मतदान में इसका जवाब देंगे.” हालांकि उनकी तीसरी जीत का सफर आसान नहीं दिख रहा है.
स्थानीय नेता और पूर्व पारा-शिक्षक गमलियाल हेंब्रम इस बार एक मजबूत चुनौती पेश कर रहे हैं. हेंब्रम अपनी जमीनी पकड़ और स्थानीय जुड़ाव का लाभ उठा रहे हैं. फुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित करने और अपने घर से स्कूल चलाने के लिए पहचाने जाने वाले हेंब्रम, गांव-गांव जाकर सरकारी योजनाओं के लाभों के बारे में सवाल पूछ रहे हैं. 2019 में आजसू के टिकट पर मात्र 2,573 वोट हासिल करने वाले हेंब्रम इस बार भाजपा के साथ नए जोश के साथ मैदान में हैं.
मतदाताओं की राय: परंपरा बनाम बदलाव
बरहेट के मतदाता परंपरागत प्रतीकों से गहराई से जुड़े हैं, अब महत्वपूर्ण सवाल उठाने लगे हैं. आदिवासी महिलाओं की चौपालों में पानी की कमी, अधूरे वादे और खराब शिक्षा सुविधाएं चर्चा में हैं.
विदु पहाड़िया कहती हैं, “पानी एक बड़ी समस्या है.” चंदू पहाड़िया जोड़ते हैं, “यहां न स्कूल है न शिक्षक.” उनकी नाराजगी और हताशा बुनियादी जरूरतों की अनदेखी से उपजी है, जो पिछले अभियानों में किए गए वादों के बावजूद अधूरी हैं.
वहीं बरहेट बस स्टैंड के पास मुसलमान मतदाता खुलकर सोरेन के पक्ष में बोलते हैं. मोहम्मद अरिफ अंसारी सड़कों, बिजली, और पानी की टंकियों को सोरेन सरकार की उपलब्धियों के रूप में गिनाते हैं. मोहम्मद शमीम कहते हैं, “हर मोहल्ले में कुछ न कुछ सुधार हुआ है. काम चल रहा है.”
बरहेट की राजनीतिक कहानी
बरहेट की राजनीतिक कहानी इतिहास और संस्कृति से गहराई से जुड़ी है. 1990 में हेमलाल मुर्मू ने कांग्रेस के थॉमस हांसदा से यह सीट छीनी थी, जिसके बाद से झामुमो ने इसे अपने कब्जे में रखा है. 2014 में हेमंत सोरेन ने 62,515 वोटों के साथ जीत दर्ज की, जबकि भाजपा के हेमलाल मुर्मू को 38,428 वोट मिले. 2019 में सोरेन ने इस अंतर को बढ़ाकर 73,725 तक पहुंचा दिया, जबकि भाजपा के साइमन मालतो को 47,985 वोट मिले.
भाजपा ने इस क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा जोर-शोर से उठाया है. हेंब्रम इसे स्थानीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की लड़ाई बताते हैं, जबकि सोरेन इसे ध्रुवीकरण और वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश मानते हैं.
बरहेट के लिए यह चुनाव सिर्फ सत्ता का सवाल नहीं है. हेमंत सोरेन के लिए यह आदिवासी दिलों से जुड़े रहने और राज्य नेतृत्व की जिम्मेदारी निभाने का इम्तिहान भी है. गमलियाल हेंब्रम के लिए यह क्षेत्र के उपेक्षित समुदायों के लिए एक नया विकल्प पेश करने की चुनौती है.
बरहेट के मतदाता परंपरा और बदलाव के बीच फंसे हुए हैं. जैसे-जैसे मतदान का दिन नजदीक आ रहा है, वे अपने विकल्पों को गंभीरता से तौल रहे हैं. यह देखना बाकी है कि हेमंत सोरेन तीसरी बार जीत हासिल करेंगे या गमलियाल हेंब्रम चुनावी गणित को पलटने में सफल होंगे.