Eye Infections: ओकुलर सरफेस डिजीज आंख की सतह पर होने वाला एक रोग है, जो कॉर्निया, कंजंक्टिवा और पलकों सहित आंख की सतह को प्रभावित करता है. अमेरिका में हुए एक अध्ययन के अनुसार, पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 10 के बढ़ते जोखिम वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आंखों में संक्रमण होने का खतरा दोगुना हो सकता है. यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो एंशुट्ज मेडिकल कैंपस के शोधकर्ताओं ने दिखाया कि वायु प्रदूषण से उत्पन्न एंबिएंट पार्टिकल्स (छोटे कण) से आंख संबंधी समस्याओं से पीड़ित रोगियों की चिकित्सीय विजिट दोगुनी से भी अधिक हो गई.
यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो स्कूल ऑफ मेडिसिन में महामारी विज्ञान और नेत्र विज्ञान की सहायक प्रोफेसर जेनिफर पटनायक ने कहा, “विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जलवायु परिवर्तन को “मानवता के सामने सबसे बड़ा स्वास्थ्य खतरा” घोषित किया है. इसके बावजूद भी जलवायु परिवर्तन से संबंधित वायु प्रदूषण के नेत्र स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव पर सीमित अध्ययन हैं.”
अध्ययन में टीम ने डेनवर महानगर क्षेत्र में आंख में जलन और एलर्जी से संबंधित दैनिक बाह्य रोगी कार्यालय दौरों तथा दैनिक परिवेशीय विशेष पदार्थ स्तरों के बीच संबंध की जांच की. ओफ्थैल्मिक क्लिनिक्स में आंखों की जलन और एलर्जी से पीड़ित लगभग 1,44,313 लोगों ने विजिट की. शोधकर्ताओं ने कहा कि जब पीएम10 कंसेंट्रेशन 110 थी, तो दैनिक विजिट की संख्या औसत से 2.2 गुना अधिक थी. कंसेंट्रेशन बढ़ने के साथ क्लिनिक विजिट दर के अनुपात में भी वृद्धि देखने को मिली.
जर्नल क्लिनिकल ऑप्थल्मोलॉजी में प्रकाशित यह शोध जलवायु परिवर्तन से आंखों को कैसे प्रभावित कर सकता है, इस पर गौर करने वाले पहले अध्ययनों में से एक है. पटनायक ने कहा कि वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य जोखिम संक्रामक रोग, मौसम संबंधी रुग्णता (मोरबिडिटी) और फेफड़े, गुर्दे और हृदय संबंधी कई तरह की बीमारियों सहित कई तरह के परिणामों को जन्म देते हैं. यह अध्ययन भारत के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)