बीए पास गीता कोटा में चला रही आॅटो

कोटा । काम कोई भी हो , छोटा या बड़ा नहीं होता। उस काम को करने की इच्छा शक्ति होनी चाहिए। हर व्यक्ति को नया काम शुरू करने में कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है विशेष रूप से महिलाओं को वह भी ऐसा काम जो अधिकतर पुरुष ही करते रहे है। लेकिन कोटा की बेटियों ने शादी के बाद भी घर परिवार के साथ ही लोगों का सामना करते हुए अपने लिए एक सुरक्षित रोजगार चुना वह है ऑटो चलाना। कोटा शहर में ऑटो चलाने का काम पहले अधिकतर पुरुष ही करते थे। लेकिन वर्तमान में करीब दो दर्जन से अधिक महिलाएं भी ऑटो चला रही है। उन महिला ऑटो चालकों को देखकर अकेली महिला, परिवार के लोग व स्टूडेंट हाथ देकर रोकते है। कहीं भी आने-जाने में वे महिला ऑटो चालक के साथ स्वयं को अधिक सुरक्षित भी महसूस कर रहे है। महिलाओं ने भी इस रोजगार को इसलिए चुना क्योंकि यह उनके लिए चलता फिरता  एटीएम है। सड़क पर ऑटो लेकर निकलने पर ये महिलाएं एक दिन में 500 से 700 रुपए तक कमा रही है। 

18 साल नर्सिंग की नौकरी की, अब ऑटो चला रही
भीमगंजमंडी निवासी गीता शर्मा स्रातक तक शिक्षित है और कम्प्जूटर कोर्स भी किया हुआ है। उन्होंने निजी अस्पताल में करीब 18 साल तक नर्सिंग क्षेत्र में नौकरी की लेकिन अब दो साल से शहर में ऑटो चला रही है। उनके पति राकेश शर्मा भी ऑटो चलाते है। 19 व 15 साल के दो बच्चे है। गीता ने बताया कि नौकरी के दौरान बिना गलती के भी कई बार बहुत कुछ सुनना पड़ता था। लेकिन एक दिन ख्याल आया कि क्यों किसी की गुलामी की जाए और नौकरी छोड़ ऑटो थाम लिया। घर का ऑटो, बेकार नहीं खड़ा रहेगा: गीता ने बताया कि नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने सोना कि घर का ऑटो है। कभी यदि कोई विपरीत परिस्थिति होती है तो घर का ऑटो बेकार तो खड़ा नहीं रहेगा। उससे परिवार का गुजारा चलाया जा सकता है। इस मकसद से तीन माह का प्रशिक्षण लिया। उसके बाद लाइसेंस बनवाया और दो साल से शहर में ऑटो चला रही है। 

घर व देश चला रही महिलाएं
गीता ने बताया कि शुरुआत में उन्हें कई लोगों के ताने सुनने पड़े। हर कोई यही कहता था कि ऑटो चलाना महिलाओं का काम है क्या। यहां तक की उनके बच्चों को भी लोग यही कहते थे कि तुम्हारी मम्मी को ऑटो चलाने की क्या जरूरत है। गीता ने बताया कि उन्होंने सभी परिस्थितियों का सामना किया। बच्चों को इसके लिए तैयार किया। फिर जो भी उनसे कहता तो सभी को वे यही जवाब देने लगी कि जब महिला घर और देश चला सकती है तो ऑटो चलाने में क्या बुराई है। किसी के आगे हाथ फेलाने से तो खुद का काम करना अच्छा है। आज जब भी वे घर से निकलती है तो रोजाना 700 से 800 रुपए कमाकर ही लाती है। 

बच्चों को इंगलिश मीडियम में पढ़ा रही ऑटो चालक रेखा
ऑटो चलाकर दे रही परिवार को आर्थिक सम्बल
विज्ञान नगर निवासी रेखा बारोही (37) पिछले 8 साल से ऑटो चला रही है। इससे पहले वे ऑटो यूनियन में रिसेप्सनिस्ट का काम करती थी। वहां से ही उन्हें ऑटो चलाने की प्रेरणा मिली। रेखा ने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी। अकेले पति की कमाई से घर नहीं चलता। 12 वीं तक पढ़ी होने से कहीं अच्छी नौकरी भी नहीं मिली। 12, 9 व 5 साल के तीन बच्चे भी है। ऐसे में ऑटो चलाने का प्रशिक्षण लिया और सड़क पर निकल पड़ी।  रेखा ने बताया कि वे पहले 250 रुपए रोजाना पर और अब 300 रुपए रोजाना किराए पर ऑटो लेकर चलाती है। शुरुआत में उन्होंने स्कूल व कोचिंग के बच्चों को लाने ले जाने का काम किया। वह काम अभी भी जारी है। साथ ही अब शहर में सुबह से रात 8 बजे तक ऑटो चला रही है। 

मार्शल आर्ट सीखा, हर स्थिति का कर रही सामना: रेखा ने बताया कि ऑटो चलाने के दौरान हर तरह के लोग मिलते है। कई बार गलत लोग भी मिले।  लेकिन उनसे निपटने के लिए सभी महिला ऑटो चालकों ने मार्शल आर्ट सीखा हुआ है। इससे आत्म विश्वास आया है। अब कोई भी स्थिति आए उसका सामना कर सकती है। 

अकेली महिला व स्टूडेंट के लिए सुरक्षित
रेखा ने बताया कि महिलाओं का ऑटो चलाना लोगों को अखतरा है। लेकिन अकेली महिला व कोचिंग स्टूडेंट महिला ऑटो चालकों को अधिक सुरक्षित  महसूस करती है। महिला ऑटो चालक देखकर हाथ देकर रोकती है। रात के समय या सुबह जल्दी बाहर से ट्रेन से आनी वाली स्टूडेंट उन्हें कई बार फोन करके बुलाती है। 

किराया निकालकर 500 रुपए रोजाना कमा रही
रेखा ने बताया कि वे 300 रुपए रोजाना किराए का ऑटो लेकर चलाती है। जब भी घर से बाहर निकलती है तो कमाकर ही आती है।। ऑटो मतलब चलता फिरता एटीएम है। किराया निकालने के बाद रोजाना करीब 500 रुपए कमाकर ही लाती है।  तीनों बच्चों को इंगलिश मीडियम स्कूल में पढ़ा रही है। दूसरे बच्चों को स्कूल कोचिंग लाने ले जाने के अलावा खुद के बच्चों को भी स्कूल छोड़ने व लाने का काम करती है। 

काम के साथ घर भी संभाल रही
रेखा ने बताया कि वे काम के साथ घर भी पूरी मेहनत से संभाल रही है। सुबह जल्दी घर से निकलने से पहले बच्चों के लिए टिफिन तैयार करती है। खुद के लिए भी टिफिन लेकर निकलती है। जहां भी समय मिलता है वहां खाना खाती है। रात के घर आने पर फिर खाना बनाना व परिवार को समय देती है।  रेखा ने बताया कि काम कोई भी छोटा नहीं होता।  महिलाएं यदि ठान लें तो कोई भी काम कर सकती है। 

25 से अधिक महिलाएं चला रही ऑटो
नगर निगम में डेएनयूएलएम की प्रबंधक हेमलता गांधी ने बताया कि निगम में नौकरी करने से पहले वे भी ऑटो चलाती थी। शहर में सबसे पहले काली बाई ने ऑटो चलाया था। वर्तमान में उनकी उम्र 71 साल है और देखने में समस्या होने से उन्होंने ऑटो चलाना कम कर दिया है। वहीं एक महिला गुड्डी बाई रात में ही ऑटो चलाती थी लेकिन उनका कुछ समय पहले निधन हो चुका है। 

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