नई दिल्ली। भारत का आदिवासी समुदाय 2014 से पहले एक कठिन संघर्ष का सामना कर रहा था, उनका संघर्ष काफी हद तक देश की नजरों से दूर था। दशकों तक, वे हाशिए पर रहे, उन्हें नजरअंदाज किया गया और सम्मानजनक जीवन जीने के लिए आवश्यक सहायता के बिना उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया। कई आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा और आर्थिक अवसर, सुविधाएं या तो न्यूनतम थीं या मौजूद ही नहीं थीं। लेकिन 2014 के बाद, एक परिवर्तनकारी बदलाव हुआ। मोदी सरकार की आदिवासी समुदायों पर केन्द्रित पहलों ने ना केवल आदिवासियों की जरूरतों को स्वीकार किया, बल्कि इन मुद्दों को तत्परता से प्राथमिकता भी दी। शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक सशक्तीकरण तक इन समुदायों को अब उस तरह का समर्थन और निवेश देखने को मिल रहा है जो उन्हें कई पीढ़ियों से नहीं मिला था।
शिक्षा का क्षेत्र
उदाहरण के लिए शिक्षा को ही ले लें। आदिवासी बच्चों को एक समय में गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा मिलने की बहुत कम उम्मीद थी। 2014 से पहले जो थोड़े बहुत एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (ईएमआरएस) थे, वे संख्यां की दृष्टि से कम थे और उनमें संसाधनों की भी कमी थी। लेकिन इसके बाद, शिक्षा पर मोदी सरकार द्वारा विशेष ध्यान दिए जाने के कारण इन स्कूलों का महत्वपूर्ण विस्तार हुआ है। आज, 715 स्कूलों की मंजूरी दी गई है, और 476 पहले से ही चल रहे हैं, जिनमें 1.33 लाख से अधिक छात्र पढ़ रहे हैं। ये स्कूल आधुनिक सुविधाओं, डिजिटल कक्षाओं और खेल के बुनियादी ढांचे से लैस हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि आदिवासी बच्चों को भी उनके शहरी समकक्षों के बराबर शिक्षा मिले। 17,000 करोड़ रुपए की छात्रवृत्ति ने 3 करोड़ से अधिक आदिवासी छात्रों को और सशक्त बनाया है, जिससे उन्हें उच्च शिक्षा और बेहतर करियर के अवसर मिल रहे हैं। आदिवासी युवाओं के लिए जो रास्ता कभी बंद लगता था, वह अब खुला हुआ है और वे संभावनाओं से भरे भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।
वन अधिकर कानून
वन अधिकार कानूनों के कठोर क्रियान्वयन के साथ, आदिवासी भूमि अधिकारों को मान्यता देने और उनकी रक्षा करने में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। 2014 से पहले, आदिवासी समुदायों के पास अपनी भूमि को लेकर सुरक्षा की भावना बहुत कम रहती थी, वे अतिक्रमण और विस्थापन के निरंतर भय में रहते थे। अपनी भूमि पर नियंत्रण नहीं होने के कारण लंबे समय तक इस समुदाय में गरीबी और संस्कृति खोने का सिलसिला बना रहा। लेकिन मोदी सरकार के तहत, एक ऐतिहासिक बदलाव हुआ है। वन अधिकार कानून को सक्रिय रूप से लागू किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप आदिवासी परिवारों को 23 लाख से अधिक भूमि के अधिकार दिए गए हैं, जिसमें1.9 करोड़ एकड़ से अधिक क्षेत्र शामिल है। इस ऐतिहासिक कदम ने आदिवासियों को अपनी भूमि पर खेती करने, पारंपरिक आजीविका का अभ्यास करने और विस्थापन के डर के बिना अपनी पैतृक विरासत की रक्षा करने का अधिकार दिया है। आदिवासी भारत के लिए, भूमि केवल एक संसाधन नहीं है, बल्कि सशक्तिकरण के एक नए युग में सुरक्षा और सम्मान का स्रोत है।
आर्थिक सशक्तिकरण
आर्थिक सशक्तिकरण एक और ऐसा क्षेत्र है जहां अत्यकधिक परिवर्तन देखने को मिला है। 2014 से पहले, आदिवासी समुदाय अक्सर अपनी आजीविका के लिए वनोपज पर निर्भर रहते थे, लेकिन इन संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए उनके पास सहयोग या साधन नहीं थे। आज, राष्ट्रीय बांस मिशन जैसी पहलों ने आदिवासियों के लिए आर्थिक परिदृश्य फिर से परिभाषित किया है। बांस को पेड़ की श्रेणी से हटाकर, सरकार ने आदिवासी परिवारों के लिए बांस की कटाई, प्रसंस्करण और बिक्री के नए रास्ते खोले हैं, जिससे उन्हें आय का एक स्थायी स्रोत मिला है। वन धन विकास केन्द्रों (वीडीवीके) ने भी 45 लाख से अधिक आदिवासी लाभार्थियों का सहयोग किया है, जिससे उन्हें वनोपज के मूल्य संवर्धन और अपनी आय बढ़ाने में मदद मिली है। पीएम-किसानके तहत, लगभग 1.2 करोड़ आदिवासी किसान अब प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं, जिससे उन्हें कृषि में निवेश करने और अपनी उत्पादकता में सुधार करने का अधिकार मिला है। ये पहले न केवल आदिवासी अर्थव्यवस्थाओं को बदल रही हैं। बल्कि आत्मनिर्भरता और दीर्घकालिक समृद्धि की नींव रख रही हैं।