सरकार और प्राइवेट स्कूल के बीच पिस रहा अभिभावक

कोटा। आरटीई के तहत प्री-प्राइमरी कक्षाओं में अध्ययनरत विद्यार्थियों की फीस को लेकर सरकार और प्राइवेट स्कूलों के बीच विवाद में अभिभावक पिस रहा है। सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत सत्र 2024-25 में निजी स्कूलों में नर्सरी से विद्यार्थियों को एडमिशन तो दिलवा दिए लेकिन पुनर्भरण राशि कक्षा-एक से दे रही है। जबकि, निजी स्कूलों द्वारा प्री-प्राइमरी कक्षाओं में अध्ययनरत बच्चों का पुनर्भरण किए जाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन, सरकार के हाथ खड़े कर देने से प्राइवेट स्कूल अभिभावकों पर फीस का दबाव बना रहे हैं।  कहीं, नर्सरी में एडमिशन न देने तो कहीं पिछले साल नर्सरी से एलकेजी व एचकेजी में प्रमोट हुए बच्चों की फीस मांगी जा रही है। इस तरह की शिकायतें लेकर अभिभावक शिक्षा विभाग के चक्कर काट रहे हैं। प्राइवेट स्कूल और सरकार के बीच विवाद में अभिभावक चक्कर घन्नी हो रहे हैं। 

प्रतिदिन आ रहे 40 से 50 मामले 
शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, आरटीई में चयनित बच्चों को नर्सरी में एडमिशन न देने व प्रमोटी एलकेजी-एचकेजी के विद्यार्थियों से फीस मांगे जाने की शिकायतें प्राप्त हो रही हैं। प्रतिदिन इस तरह के 40 से 50 मामले आ रहे हैं।  अभिभावकों द्वारा लिखित में शिकायत देने पर विभाग द्वारा संबंधित स्कूलों को पाबंद भी किया जा रहा है। वहीं,  अभिभावकों का कहना है, विभाग द्वारा सख्ती किए जाने पर थोड़े दिन तो मामला शांत रहता है लेकिन, कुछ दिनों बाद फिर से फीस फीस मांगना शुरू कर देते हैं।   

क्या है विवाद
शिक्षा विभाग ने सत्र 2023-24 में आरटीई के तहत प्री-प्राइमरी से प्रथम कक्षा तक में प्रवेश लिए थे। लेकिन, आरटीई का भुगतान प्रथम कक्षा से ही देने का फैसला लिया। जिसका निजी स्कूलों ने विरोध किया। इस पर शिक्षा विभाग की मान्यता को लेकर चेतावनी दिए जाने के बाद प्राइवेट स्कूलों ने प्रवेश दे दिया। वहीं, नए सत्र 2024-25 में शिक्षा विभाग ने नर्सरी और पहली कक्षा में ही प्रवेश देने के लिए बच्चों का चयन किया। कक्षा-एक में तो सरकार पुनर्भरण राशि का भुगतान कर रही लेकिन नर्सरी का नहीं कर रही है। जिसका विरोध करते हुए निजी स्कूल भुगतान की मांग कर रहे हैं।   

एक हजार स्कूल हैं आरटीई में पंजीकृत
कोटा जिले में करीब एक हजार निजी स्कूल आरटीई में पंजीकृत हैं। कुछ निजी स्कूलों द्वारा सरकार के आदेशानुसार चयनित बच्चों को पढ़ा रहे हैं लेकिन अधिकतर स्कूल फीस मांग रहे हैं। जिसकी वजह से अभिभावक शिक्षा विभाग के चक्कर काटने को मजबूर हैं। 

अधिकारी बोले- कर रहे पाबंद
इस तरह के मामले आ रहे हैं। अभिभावक मौखिक व सम्पर्क पोर्टल के माध्यम से शिकायत कर रहे हैं लेकिन लिखित में शिकायत नहीं दे रहे। हालांकि, प्राइवेट स्कूलों को सरकार के दिशा-निर्देशानुसार पढ़ाने के लिए पाबंद किया जा रहा है।  
– यतीश विजय, जिला शिक्षाधिकारी, शिक्षा विभाग प्रारंभिक 

चयनित विद्यार्थियों को एडमिशन देने के लिए प्राइवेट स्कूल सरकार से बाध्य हैं। कार्यालय में जो भी शिकायतें आ रहीं हैं, इस पर संबंधित स्कूलों को नोटिस जारी कर समाधान करवा रहे हैं। यदि, इस तरह की और भी कोई शिकायत आती है तो उसकी जांच करवाकर कार्रवाई की जाएगी।
– केके शर्मा, जिला शिक्षाधिकारी शिक्षा विभाग माध्यमिक

अभिभावकों का छलका दर्द: निजी स्कूल मांग रहे पैसा 
तलवंडी स्थित कॉन्वेंट स्कूल में मेरे बालक का नर्सरी में आरटीई के तहत प्रवेश हुआ है। वरियता सूची में क्रमांक 41 है। स्कूल वाले एडमिशन नहीं होने की बात कहकर गुमराह कर रहे हैं। जबकि, आरटीई पोर्टल पर प्रवेशित लिखा हुआ आ रहा है। स्कूल प्रशासन बच्चे को एडमिशन नहीं दे रहे। शिक्षा विभाग को लिखित शिकायत देने के बावजूद कुछ नहीं हुआ।
– पारसमल डाबी, अभिभावक

मेरी पुत्री रूचिका का नर्सरी में नम्बर आया है। डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के लिए स्कूल गया तो वहां की प्राचार्य ने 15 हजार फीस जमा करवाने को कहा। फीस के अभाव में एडमिशन नहीं देने की बात कही। शिक्षा विभाग को 2 अगस्त को लिखित शिकायत दी है। फिर भी समाधान नहीं हुआ। 
– पुरुषोत्तम नागर, अभिभावक

मेरे पुत्र भावेश महावर का नर्सरी कक्षा में आरटीई के तहत दाखिला हुआ है। लेकिन, स्कूल वाले एडमिशन नहीं दे रहे। प्राचार्य ने फीस जमा करवाने की बात कहते हुए कहा कि सरकार हमें नर्सरी से एचकेजी तक पैसा नहीं देती है। यदि, फीस दोगे तो ही बच्चे का एडमिशन हो सकेगा। 
– नरेंद्र महावर, अभिभावक

क्या कहते हैं निजी स्कूल संचालक 
आरटीई एक्ट में यह कहीं भी नहीं लिखा है कि प्राइवेट स्कूल फ्री में पढ़ाएगा। जबकि, सरकार द्वारा चयनित बच्चों का अलॉटमेंट करने पर उनकी फीस वह स्वयं देगी। सरकार ने दो साल पहले नर्सरी, एचकेजी, एचकेजी और फर्स्ट कक्षा में एडमिशन दे दिए लेकिन पेमेंट पहली कक्षा का ही दिया जा रहा। हमने तो तीन साल बच्चे को पढ़ा दिया अब सरकार पैसे देने से मुकर रही है। प्रत्येक स्कूल में प्री-प्राइमरी के तीन साल में करीब 30 बच्चे होते है और न्यूनतम 10 हजार रुपए फीस के हिसाब से इन बच्चों का सालाना बिल 3 लाख रुपए होता है। ऐसे में प्राइवेट स्कूल तीन लाख रुपए का नुकसान कैसे भुगतेगा। हम हाईकोर्ट से केस जीत चुके हैं। कोर्ट ने सरकार को फीस पुनर्भरण करने के आदेश भी दिए हैं लेकिन सरकार ने मामले को हाईकोर्ट की डबल बेंच में लगाकर लटका दिया है। 
– जमना शंकर प्रजापति, जिलाध्यक्ष, निजी स्कूल संचालक संघ 

सरकार ने भुगतान प्रक्रिया में बदलाव करके अभिभावकों एवं निजी विद्यालयों के बीच विवाद खड़ा कर दिया है। न सरकार पैसा देना चाहती है और न ही अभिभावक। इस कारण से बच्चा निशुल्क शिक्षा के अधिकार से वंचित हो रहा है। ऐसे में सरकार को चाहिए की प्री-पाइमरी कक्षाओं का भुगतान करें ताकि आरटीई का लाभ बच्चों को मिल सके। 
– रमेशचंद सांमरिया, जिला उपाध्यक्ष, निजी स्कूल संचालक संघ 

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 12(1) के अंतर्गत गैर सरकारी विद्यालयों को पुनर्भरण के लिए कानून में स्पष्ट प्रावधान है। लेकिन सरकार के उच्च अधिकारियों ने इस कानून में रुकावट उत्पन्न करके निजी स्कूल एवं अभिभावकों के बीच खाई बना दी। सरकार द्वारा प्री-प्राइमरी कक्षाओं के भुगतान आदेश प्रक्रिया जारी करें, ताकि गरीब -असहाय व दुर्बल वर्ग के बच्चों को शिक्षा का लाभ मिल सके।   
– नफीस खान, जिला उपाध्यक्ष निजी स्कूल संचालक संघ 

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