मेडल जीते, फिर भी नौकरी का गोल हो रहा फेल, खेल का सर्टिफिकेट लेने के बाद खिलाड़ी सरकारी नौकरी की तरफ करते  हैं रूख

कोटा। हाड़ौती अंचल खेलों की प्रतिभाओं से भरा पड़ा है। यहां के युवा और बालिकाएं जिला और राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में लगातार गोल्ड और सिल्वर मेडल जीतकर क्षेत्र का नाम रोशन कर रहे हैं। लेकिन बड़ी सच्चाई यह है कि कोचों की कमी, मानक अनुरूप ग्राउंड का अभाव और लंबे समय से रुकी भर्ती की वजह से इन खिलाड़ियों का सफर आगे बढ़ ही नहीं पाता। सरकार खेलों को बढ़ावा देने के तमाम प्रयास कर रही है, लेकिन बुनियादी ढांचे की कमी खिलाड़ियों की मेहनत पर भारी पड़ रही है। खेलों से सरकारी नौकरी पाने का रास्ता खुला है। यही वजह है कि खिलाड़ी राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय सर्टिफिकेट लेकर नौकरी की तैयारी में लग जाते हैं। उनके भीतर की खेल प्रतिभा वहीं ठहर जाती है। सरकार अगर सही समय पर प्रशिक्षित कोच और मानक स्तर के मैदान उपलब्ध कराए, तो यही खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चमक सकते हैं।

फुटबॉल और क्रिकेट के लिए नहीं है राष्ट्रीय स्तर का मैदान
खेल शिक्षा अधिकारियों और कोचों के मुताबिक, हाड़ौती में फुटबॉल और क्रिकेट जैसे बड़े खेलों के लिए न तो राष्ट्रीय स्तर के मैदान हैं और न ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं। नतीजा यह है कि खिलाड़ी अपने दम पर मेहनत तो कर रहे हैं, लेकिन आगे बढ़ने के रास्ते उनके लिए बहुत जल्दी बंद हो जाते हैं।

कोटा की गर्ल्स फुटबॉल एकेडमी में सुविधाएं मौजूद
राजस्थान में फिलहाल दो सरकारी फुटबॉल एकेडमी संचालित हैं। एक लड़कियों के लिए कोटा में और दूसरी लड़कों के लिए जोधपुर में। कोटा की गर्ल्स एकेडमी में 30 सीटें हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से एक ही छात्रा कोटा शहर की है। इसका नाम निहारिका मेहरा, जो कुन्हाड़ी कोटा की है। बाकी सभी खिलाड़ी बाहर के जिलों से हैं। यहां हॉस्टल की व्यवस्था है, प्रशिक्षण सुबह-शाम होता है, और सरकार इसकी पूरी लागत उठाती है। बावजूद इसके मैदान का स्तर राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं है। 

निजी कोच अपने स्तर पर कर रहे प्रयास
सरकारी कोचों की कमी के बीच निजी क्षेत्र के कोच अपने स्तर पर खिलाड़ियों को तैयार कर रहे हैं। राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में ये खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन भी कर लेते हैं। लेकिन संसाधनों और मार्गदर्शन की कमी के चलते वे आगे चलकर बड़े स्तर की प्रतियोगिताओं में टिक नहीं पाते। नतीजा यह होता है कि कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी केवल राज्य या राष्ट्रीय स्तर का प्रमाणपत्र हासिल करके सरकारी नौकरी की तैयारी में लग जाते हैं। उनका हुनर, जो देश का नाम रोशन कर सकता था, वहीं रुक जाता है।

कोचों की भारी कमी, खिलाड़ी भटक रहे
हर खेल में प्रशिक्षित कोचों की संख्या बेहद सीमित है। यही कारण है कि खिलाड़ी सही दिशा में मार्गदर्शन नहीं पा रहे। फुटबॉल और क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों में भी यही हाल है। खासकर लड़कियों के लिए प्रशिक्षित कोच उपलब्ध नहीं हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी तैयार करने के लिए यह सबसे बड़ी बाधा है।

कागजी खानापूर्ति से नहीं बनेगा खिलाड़ी
अधिकांश स्कूल-कॉलेजों में खेल गतिविधियां केवल खानापूर्ति तक सीमित हैं। प्रतियोगिताएं होती हैं, लेकिन इनमें खिलाड़ियों को न तो बेहतर ट्रेनिंग मिलती है और न ही आवश्यक सुविधाएं। इस वजह से प्रतिभाशाली खिलाड़ी शुरूआत में दम तो दिखाते हैं, लेकिन आगे चलकर उनका करियर अधर में रह जाता है।

सरकार के प्रयास अधूरे ही साबित
सरकार खेलों को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं बना रही है। स्कूल-कॉलेजों में प्रतियोगिताएं हो रही हैं। लेकिन कोचों की भर्ती न होना और संसाधनों की कमी इन प्रयासों को अधूरा बना रही है। राजस्थान में दो सरकारी एकेडमियां जरूर चल रही हैं, लेकिन उनमें भी मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है। जब तक प्रशिक्षित कोच और मानक मैदान नहीं मिलेंगे, तब तक हाड़ौती की खेल प्रतिभाएं केवल शुरूआती स्तर तक ही सिमटकर रह जाएंगी।

2012 के बाद से नहीं हुई कोचों की भर्ती
राजस्थान सरकार की नीतियां भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। 1991 के बाद करीब 21 साल तक कोई कोच भर्ती नहीं निकली। 2012 में बड़ी मुश्किल से एक भर्ती निकली, लेकिन उसके बाद से अब तक 13 साल बीत गए। आज भी खेल विभाग में प्रशिक्षित कोचों की भारी कमी है। स्कूलों और कॉलेजों में खेलों को बढ़ावा देने के नाम पर शिक्षकों पर ही खेलों की जिम्मेदारी डाल दी जाती है। ऐसे में खेल आयोजन तो हो जाते हैं, लेकिन खिलाड़ी वास्तविक प्रशिक्षण से वंचित रह जाते हैं। खेलो इंडिया खेलो के बाद भी खिलाडियों को नौकरी नहीं मिल रही है।
– एमपी सिंह, पूर्व अध्यक्ष जिला  फुटबॉल संघ कोटा

हाड़ौती में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं
कोटा, बूंदी, झालावाड़ और बारां हाड़ौती क्षेत्र का हर जिला खेल प्रतिभाओं से लबालब है। फुटबॉल, क्रिकेट, एथलेटिक्स, कबड्डी, ताइक्वांडो और बास्केटबॉल जैसे खेलों में यहां के खिलाड़ी राज्य स्तर पर लगातार अपनी पहचान बना रहे हैं। खासकर बालिकाओं ने हाल के वर्षों में जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए गोल्ड और सिल्वर मेडल अपने नाम किए हैं। लेकिन यह तस्वीर अधूरी है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने के लिए जिन सुविधाओं की दरकार होती है, वे यहां मौजूद ही नहीं हैं।
– मधू बिश्नोई, कोच

बालिकाओं का भविष्य अधर में
बालिकाओं के खेल को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कोटा में एकेडमी जरूर खोली है, लेकिन यह केवल औपचारिकता बनकर रह गई है। कोचों की कमी, मैदान का स्तर खराब होना और स्थानीय प्रतिभाओं का एकेडमी से दूर रहना इस योजना को अधूरा बना रहा है। आज की बालिकाएं हर खेल में आगे बढ़ रही हैं। ओलंपिक से लेकर एशियन गेम्स तक, भारतीय बालिकाएं देश का नाम ऊंचा कर रही हैं। लेकिन कोटा जैसी जगहों पर, जहां बालिकाएं मेहनत करने को तैयार हैं, उन्हें सही मार्गदर्शन और मंच नहीं मिल पा रहा।
– मीनू सोलंकी, कोच

यह बोलीं एकेडमी की बालिकाएं
मैं दो साल से एकेडमी में हू, अभी हॉस्टल में रह रही हूं। सुबह और शाम रोजाना दो घंटे स्टेडियम में मैच की प्रेक्टिस करते हैं। प्रैक्टिस के दौरान रनिंग, फास्ट रनिंग, स्टेचिंग, शूटिंग, कोन तथा व्यायाम करते है। राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में अलवर में हमारी एकेडमी टीम गोल्ड मेडल जीता है। आगे भी राष्टÑीय स्तर खेलने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे है। चार साल से लगातार गोल्ड मेडल ला रहे है।
-अंजलि मेहरा, कुन्हाड़ी कोटा

मैंने इस साल ही एकेडमी ज्वाइनिंग की है। मैं इसके माध्यम आगे बढ़ना चाहती हूं तथा राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के साथ नेशनल व इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में पार्टिसिपेट करना चाहती हूं। इसके लिए मैं कड़ी मेहनत कर रही हूं। हमारे कोच भी अच्छे है, जो हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते है।
-निहारिका मेहरा, हनुमानगढ़

मैंने चार साल रहकर एकेडमी में पढ़ाई की तथा कोटा के रामपुरा की रहने वाली हूं। मैंने 13 बार राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया तथा 6 बार गोल्ड, 2 बार सिल्वर व एक बार कांस्य पदक हासिल किया। अभी हाल ही में नेशनल प्रतियोगिता में भाग भी लिया है हम प्रतियोगिता पंजाब के अमृतसर में हुई थी जिसमें सभी स्टेट की टीमों ने पार्टिसिपेट किया था। अब हमारे सामने यह दुविधा है कि आगे की प्रतियोगिताओं के लिए कैसे तैयारी करें, अच्छे कोचों का गाइडेंस के साथ राष्टÑीय-अंतरराष्टÑीय मैचों में भाग लेने के लिए प्रशासन से हमें कोई सपोर्ट नहीं मिल पा रहा है। 
–  मेधनी सैन, रामपुरा, कोटा

खेलों से नौकरी तक खुल रही राह
हाड़ौती के खिलाड़ी अब खेलों के जरिए न सिर्फ अपना हुनर दिखा रहे हैं बल्कि सरकारी नौकरियों तक पहुंच भी बना रहे हैं। राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में कोटा के युवा लगातार हिस्सा ले रहे हैं और अपनी मेहनत व लगन से गोल्ड मेडल जीतकर शहर का नाम रोशन कर रहे हैं। सरकार की ओर से खिलाड़ियों के लिए सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं ताकि वे खेल के हर स्तर पर बेहतर प्रदर्शन कर सकें। खेल विभाग की ओर से खिलाड़ियों को और अधिक सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए प्रस्ताव भी सरकार को भेजा गया है। सुविधाओं का दायरा और बढ़ा रहे है ताकि खिलाड़ी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक बिखेर सकें।
-वाईबी सिंह, खेल विकास अधिकारी, कोटा

By admin