शिक्षक दिवस आज - समाज के रियल हीरो तराश रहे भविष्य

कोटा। अज्ञानता के अंधेरे से ज्ञान की रोशनी की ओर ले जाने वाले गुरु को भारतीय संस्कृति में जो स्थान प्राप्त है, वह माता-पिता और ईश्वर को भी नहीं है। लेकिन, बदलते समय के साथ गुरु-शिष्य के संबंधों का आधार भी बदल गया। त्याग और समर्पण का भाव अब व्यापारिक हो गया। जिससे शिष्य और गुरु के बीच निष्ठा की जमीन दरकने लगी तो पैसों के तराजु पर ज्ञान तोला जाने लगा।  ऐसे माहौल में भी समाज में कुछ लोग ऐसे हैं, जो आज भी विश्वास, त्याग, समर्पण की परंपरा को अपने संघर्ष से सींच रहे हैं। उनके लिए शिक्षक दिवस है। पेश है खबर के प्रमुख अंश……

छात्राओं को ग्रेजुएशन से बीएड करवाई
सेवानिवृत व्याख्याता अश्वनी गौतम ने दो छात्राओं को गोद लेकर न केवल पढ़ा रहे हैं बल्कि स्वयं के खर्चे पर एमएसी बीएड व बीए-बीएड भी करवाई है। वर्तमान में दोनों छात्राओं को अध्यापक ग्रेड-1 भर्ती परीक्षा की कोचिंग भी स्वयं के खर्चें पर करवा रहे हैं। गौतम कहते हैं, वर्ष 2007 से 2012 तक अर्जुनपुरा राजकीय विद्यालय में पदस्थापित थे। वहां 9वीं कक्षा की छात्रा अर्चना (परिवर्तित नाम) अध्ययनरत थी, घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने से उनके पिता आगे पढ़ाना नहीं चाहते थे। मैंने उसके पिता से बात कर गीता को गोद लिया और एमएससी बीएड करवाई। इसी तरह वर्ष 2015 में गुमानपुरा स्कूल में ट्रांसफर हुआ तो यहां भी 9वीं कक्षा की छात्रा सीमा (परिवर्तित नाम) के पिता व भाई नहीं थे। घर की जिम्मेदारी मां पर थी। ऐसे में सीमा को गोद लेकर बीए-बीएड करवाई।  

2000 बच्चों को किया शिक्षित, खोली नि:शुल्क कोचिंग
बच्चों को कूड़ा-कचरा बीनते देख इंजीनियर अक्षय वैष्णव का दिल पसीज गया। उन्होंने मल्टीनेशनल कम्पनी की नौकरी छोड़ नि:शुल्क कोचिंग की नींव डाली और असहाय-अनाथ बच्चों को शिक्षित करना ही अपनी जिदंगी का मकसद बना लिया। संस्था के फाउंडर अक्षय कहते हैं, 5 जनवरी 2022 को रंगबाड़ी सर्कल के पास एवी निशुल्क कोचिंग की शुरुआत की थी। दोस्तों के साथ  बस्तियों में जाकर स्कूल न जाने वाले बच्चों को चिन्हित किया। वर्तमान में कोचिंग की दो ब्रांच हैं। जहां कक्षा 1 से 10वीं तक के बच्चों को नि:शुल्क कोचिंग देते हैं। अब तक 2000 बच्चों को शिक्षित कर चुके हैं। हाल ही में उनके कोचिंग से एक छात्र ने ईरान में आयोजित इंटरनेशनल ओलम्पियाड सिलवर मेडल प्राप्त किया। उल्लेखनीय कार्यों के लिए जिला कलक्टर द्वारा अक्षय को दो बार जिला स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है।

टूटती शिक्षा की डोर जोड़ रहे भारत 
शिक्षा विभाग में कार्यरत सहायक प्रशासनिक अधिकारी भारत पाराशर टूटती शिक्षा की डोर जोड़ रहे हैं। वे स्वयं के खर्चे पर एक दर्जन से अधिक बच्चों को सरकारी व प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। जिन बच्चों को प्राइवेट स्कूलों ने आरटीई के दायरे से बाहर कर एडमिशन देने से इंकार कर दिया, भारत ने उन्हीं बच्चों का उसी स्कूल में खुद की जेब से फीस भरकर एडमिशन कराया। वहीं, कई बच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर स्टेशनरी का खर्चा भी उठा रहे हैं। आॅफिस के बाहर मोबाइल, मैकेनिक व चाय की थड़ियों पर काम करते बच्चों को देख दिल पसीज गया। उनके अभिभावकों से बात कर स्कूल भेजने को राजी किया। जहां पैसा रूकावट बना वहां पाराशर ढाल बनकर खड़े हो गए।  

नीट की नि:शुल्क कोचिंग दे रही अनुभूति
कोचिंग इंस्टीटयूट में नीट-यूजी की फैकल्टी प्रोफेसर अनुभूति दीक्षित महावीर नगर विस्तार योजना में अपने आवास पर बच्चों को नि:शुल्क नीट की कोचिंग दे रही हैं। अनुभूति बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ गणित, बॉडी लैंग्वेज, जिंदगी जीने की कला, बातचीत करने का लहजा, कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी और संस्कार के अलावा नैतिक शिक्षा का भी ज्ञान दे रहीं हैं। इसके अलावा बीमार बच्चों का भी खुद अपने खर्चे पर इलाज करवातीं है। अनुभूति कहतीं हैं, हर दिन हर पल, कहीं न कहीं, अशिक्षा टकरा ही जाती है। इनके जीवन में रोशनी सिर्फ शिक्षा के जरिए ही आ सकती है। 

30 बच्चों को भिक्षावृति से दूर कर पढ़ा रहीं बीना 
जिन बच्चों के हाथों में किताबें होनी चाहिए थीं, वे भिक्षा मांग रहे थे। जिसे देख शिक्षिका बीना केदावत की आंखें नम हो गई। उन्होंने इन बच्चों का जीवन संवारने को जिम्मा उठाया और अन्त्योदय फाउंडेशन मुम्बई के सहयोग से बाल मुस्कान पाठशाला की नींव डाली। शिक्षिका बीना बताती हैं, यह पाठशाला उन बच्चों के लिए है जिनके परिवार भिक्षावृत्ति और कचरा बीनने पर निर्भर हैं। यहां बच्चों को न सिर्फ पढ़ाई करवाई जाती है, बल्कि उन्हें किताबें, बैग, चप्पलें, स्टेशनरी और खेल-खिलौनों की सुविधा भी दी जाती है।

28 साल से विद्यार्थियों की हर मोड़ पर कर रहे मदद
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बड़गांव के व्याख्याता मनोज भारद्वाज 28 साल से जरूरतमंद बच्चों को स्टेशनरी, गणवेश, स्वेटर, जर्सी सहित जरूरत की सभी चीजें उपलब्ध करवा रहे हैं। वहीं, बोर्ड परीक्षाओं में आने वाले टॉपर्स छात्र-छात्राओं व बोर्ड फीस समेत हर वर्ष बच्चों के विकास पर 70 से 80 हजार की राशि स्वयं खर्च करते हैं। सेवाभावी कार्यों के लिए भारद्वाज को राज्य स्तरीय पुरस्कार, भामाशाह सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं। भारद्वाज द्वारा बोर्ड परीक्षा में अव्वल रहे छात्र-छात्राओं का अभिभावकों के साथ सम्मान करते हैं। टॉपर विद्यार्थियों को प्रोत्साहन स्वरूप राशि भेंट करते हैं। निर्धन छात्र-छात्राओं की 12वीं बोर्ड फीस भी स्वयं जमा करवाते हैं।  

कहानियों व संगीत से गणित को रोचक बनाया
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय गिरधरपुरा के शिक्षक नवाचार के लिए पहचाने जाते हैं। उन्होंने गणित जैसे कठिन  विषयों में जटिल गणनाओं को कहानियों व संगीत के माध्यम से रोचक बनाया। जिसका फायदा बोर्ड परीक्षाओें में विद्यार्थियों को मिले 98% के रूप में देखने को मिला। उनके प्रयासों से विद्यालय में पहली बार नेशनल मीम्स मेरिट स्कोलरशिप में कक्षा 8वीं के 4 बच्चों का चयन हुआ है। दिनेश स्वयं कई शिक्षण प्रतियोगिताओं में भी अव्वल रहे हैं। 

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