अल्मोड़ा. उत्तराखंड के ऐसे युवा कलाकार से आज हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, जिनके कंठ में मां सरस्वती विराजमान हैं. इनका नाम है दर्शन फर्स्वाण. दर्शन चमोली जिले के दूरस्थ गांव के रतगांव में रहते हैं. इनके गानों को सुनकर लोग झूम उठते हैं. अल्मोड़ा में आयोजित कुमाऊं महोत्सव में पहुंचे दर्शन ने लोकल 18 से खास बातचीत में कहा कि उन्हें बचपन से ही गीत संगीत में रुचि थी. इसके लिए वह अपनी मां को गुरु मानते हैं क्योंकि जब वह अपनी मां के साथ जंगल में लकड़ी और घास लेने के लिए जाते थे, तो उनकी मां गाना गाया करती थीं. उन्हीं को देखकर वह बड़े हुए हैं. इसके अलावा कभी जंगल जाते हुए, तो कभी गाय-भैंस और बकरी को चराने के लिए जाते थे, जहां पर वह गुनगुनाया करते थे, फिर धीरे-धीरे स्कूल और मंच पर गाना शुरू किया. तब से लेकर आज तक उनका सफर जारी है. आज लोगों का उन्हें बहुत प्यार मिलता है.
दर्शन फर्स्वाण ने कहा कि वह अभी तक करीब 40 गाने गा चुके हैं. उनकी पहली एल्बम 2014 में आई थी. गढ़वाली और कुमाऊंनी गानों के अलावा वह भजन और जागर भी गा चुके हैं. कई ऐसे गाने भी हैं, जिसमें लोगों ने कहीं ज्यादा प्यार दिया. उनके कई गाने जैसे- मोतिमा, झुमकी, झम का झोला, हाय देबुली, शिव जोगी, हे नंदा, शिव की बारात, नौकरी हिमगिरी की चेली व मासी को फूल काफी पसंद किए जाते हैं.
पलायन पर आधारित आने वाला गाना
दर्शन ने आगे कहा कि उत्तराखंड में आजकल सबसे ज्यादा पलायन काफी देखने को मिल रहा है. इसको लेकर उन्होंने गाना भी लिखा है, जो जल्द ही आने वाला है. उनका मानना है कि जो अपने गांव को छोड़कर कहीं और बस चुके हैं, वह उन्हें अपने गाने के माध्यम से अपने गांव की याद दिलाना चाहते हैं ताकि वे वापस आ जाएं.
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FIRST PUBLISHED : September 6, 2024, 13:56 IST