क्या बन पाया सपनों का उत्तराखंड? देखें क्या बोली अल्मोड़ा की जनता


अल्मोड़ा. आज 9 नवंबर को उत्तराखंड स्थापना दिवस (Uttarakhand Foundation Day 2024) मनाया जा रहा है. राज्य बने हुए आज 24 साल पूरे हो चुके हैं. अलग राज्य की मांग को लेकर उत्तराखंड के लोगों का जो सपना था, क्या वह पूरा हुआ है. इसको लेकर अल्मोड़ा की जनता क्या सोचती है, आइए जानते हैं. अल्मोड़ा की जनता का कहना है कि जिस सुनहरे राज्य की कल्पना करते हुए उन्होंने उत्तराखंड बनाने का सपना देखा था, वो अभी तक पूरा नहीं हो सका है. कितनी सरकारें बदल गईं, पर आज तक उत्तराखंड में कोई भी ऐसा बदलाव नहीं हो पाया है, जिसकी मिसाल दी जा सके.

स्थानीय निवासी कृष्ण सिंह बिष्ट ने लोकल 18 से कहा कि जिस आंदोलन और उद्देश्य से यह राज्य बना था, वह धारणा बिल्कुल भी नहीं बन पाई है और जो धूमिल ही होती गई है. प्रदेश के कई शहरों में भू-कानून और मूल निवास के लिए आंदोलन हो रहे हैं. यूपी के समय में यहां के लोगों को रोजगार की कमी रहती थी, पर उत्तराखंड बनने के बाद भी समस्या जस की तस है. चहुंमुखी विकास की बात कही जाती है लेकिन सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की स्थिति आज भी वैसी की वैसी बनी हुई है. खुशबू जोशी ने कहा कि वह अपने राज्य उत्तराखंड को ड्रग्स फ्री देखना चाहती हैं. आज पहाड़ के युवाओं के बीच नशा सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरा है. जब वह ट्यूशन पढ़ने जाती हैं, तो कई लड़के उन्हें नशा करते हुए दिखते हैं.

बेरोजगारी के साथ-साथ और भी वजह
अल्मोड़ा निवासी प्रताप सिंह अधिकारी ने कहा कि आज के हालातों को देखते हुए वह उत्तराखंड बनने से दुखी हैं. रोजगार न होने से अधिकतर लोग यहां से पलायन कर चुके हैं. बेरोजगारी के साथ-साथ और भी वजह हैं. अस्पताल खुले तो बेहतर डॉक्टर नहीं, स्कूल खुले तो अच्छे शिक्षक नहीं, जिस वजह से लोगों ने पलायन करना ही ठीक समझा. आज हर विभाग में बिना रिश्वत के काम नहीं होता है. नशे ने पहाड़ के युवाओं को अपनी चपेट में ले लिया है. नशे को रोकने के लिए किसी भी बड़े गिरोह को नहीं पकड़ा जाता है, सिर्फ खानापूर्ति के लिए छोटे तस्करों को पकड़ा जाता है.

उत्तराखंड गठन का मकसद आज भी अधूरा
स्थानीय निवासी आनंद कनवाल ने कहा कि जिस मकसद के साथ हमारे आंदोलनकारियों ने उत्तराखंड बनाने की कल्पना की थी, वो मकसद आज भी अधूरा है. पहाड़ी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है. काफी संख्या में युवा शिक्षित और योग्य हैं लेकिन आज भी वे नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं. उन्होंने सरकार से अपील की है कि शिक्षित युवाओं के रोजगार के लिए कुछ कदम उठाएं ताकि युवा वर्ग आगे जाकर उत्तराखंड का नाम रोशन कर सकें. जगह-जगह शराब की दुकानें खोल दी गई हैं, जिससे माहौल खराब हो रहा है. उन्होंने कहा कि प्राइवेट स्कूलों में जो सुविधाएं बच्चों को मिलती हैं, सरकारी स्कूल उससे कोसों दूर हैं. अगर सरकारी स्कूलों को भी प्राइवेट की तरह सभी सुविधाओं से लैस किया जाए, तो भी यह बड़ी बात होगी.

जल, जंगल और जमीन बचाने की लड़ाई आज भी जारी
स्थानीय विश्वास टम्टा ने कहा कि पहाड़ के लोगों ने अलग राज्य की मांग को लेकर जो सपना देखा था, वह सपना आज भी अधूरा है. जल, जंगल और जमीन बचाने की लड़ाई आज भी जारी है. राज्य की सबसे बड़ी समस्या पलायन है और पलायन का दानव आज भी हमारे पहाड़ों को लील रहा है. उनका मानना है कि हम अन्य राज्यों के मुकाबले बहुत पीछे हैं. उत्तराखंड की पॉलिसी में सुधार होना चाहिए ताकि युवा वर्ग नया उत्तराखंड देख सकें.

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