देशभर की जनजातियों का संगम, देहरादून में जनजातीय महोत्सव का आगाज


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Dehradun News: जनजातीय महोत्सव में मध्य प्रदेश से परफॉर्म करने आए कमलेश ने लोकल 18 से कहा कि यह महोत्सव हम लोगों के लिए एक-दूसरे से मिलने का बेहतरीन मौका है. वह एमपी के डिंडौरी जिले से हैं और धुलिया जनजाति में …और पढ़ें

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उत्तराखंड राज्य जनजातीय महोत्सव 3 मार्च तक चलेगा.

देहरादून. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में उत्तराखंड राज्य जनजातीय महोत्सव 2025 का आयोजन किया जा रहा है. महोत्सव परेड ग्राउंड में 1 मार्च से 3 मार्च तक आयोजित होगा. इसमें मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड और उत्तराखंड के लोकनृत्यों की शानदार प्रस्तुति होगी. साथ ही उत्तराखंड के कलाकार श्वेता माहरा, किशन महिपाल और सनी दयाल भी परफॉर्म करेंगे. महोत्सव में सुंदर हैंडीक्राफ्ट समेत काफी सामान भी मिल रहा है. उत्तराखंड में पांच जनजाति समुदाय (भोटिया, थारू, राजी, बोक्सा और जौनसारी) हैं. महोत्सव में दूनवासी जनजातीय समुदाय के हुनर से भी रूबरू हो रहे हैं.

चकराता क्षेत्र के ट्राइब्स स्कूल से आई छात्रा सृष्टि बिजल्वाण ने लोकल 18 से कहा कि जनजातीय महोत्सव न सिर्फ हमारे राज्य के लोगों के लिए बल्कि देशभर के जनजाति समुदायों को एक मंच देता है. इसके जरिए हम अपने और अन्य राज्यों की कला सुरै संस्कृति से रूबरू होते हैं. यहां अन्य राज्यों से हैंडीक्राफ्ट आर्टिस्ट भी आए हैं, जिनके स्टॉल से हम सामान खरीद सकते हैं, यानी हमें असम के मशहूर बैम्बू क्राफ्ट के लिए असम नहीं जाना होगा. यह महोत्सव दूनवासियों के लिए बहुत ही अच्छा मौका है.

क्राफ्ट और पेंटिंग की प्रदर्शनी
सृष्टि ने आगे कहा कि वह भी जनजाति समुदाय से आती हैं और यहां उनके समुदाय के छात्रों द्वारा क्राफ्ट और पेंटिंग की प्रदर्शनी भी लगाई गई हैं. उन लोगों ने वेस्ट मैटीरियल से बहुत अच्छे डेकोरेटिव आइटम बनाए हैं. इसके साथ ही उन्होंने उत्तराखंड की ट्रेडिशनल आर्ट ऐपण पर भी काम किया है. उत्तराखंड की भोटिया जनजाति के लोकनृत्यों में उपयोग होने वाले खास मुखौटे भी उन्होंने बनाए हैं.

एक-दूसरे से मिलने का अवसर जनजातीय महोत्सव
जनजातीय महोत्सव में मध्य प्रदेश से परफॉर्म करने आए कमलेश ने लोकल 18 से कहा कि वह इससे पहले भी देश के कई राज्यों में परफॉर्म कर चुके हैं लेकिन राज्य जनजातीय महोत्सव हम लोगों के लिए एक-दूसरे से मिलने का बेहतरीन अवसर है. वह मध्य प्रदेश के डिंडौरी जिले से हैं और धुलिया जनजाति में आते हैं. वह अपनी टीम के साथ गुदुम बाजा नृत्य करेंगे. उन्होंने कहा कि हमारी अलग वेशभूषा होती है और बाजा यानी तबला भी विशेष प्रकार से बनाया जाता है. इसे बनाने में तीन लोग जुटते हैं. बाजा बनाने में काफी समय लगता है और यह महंगा भी होता है.

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