पिता ने चीनी क्रांतिकारी लेखक के नाम पर रखा नाम, आधार देखे बिना नहीं मानते लोग


देहरादून. भारत में कई ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिनके नाम पर लोग अपने बच्चों का नाम रखते हैं लेकिन क्या आप यकीन कर पाएंगे अगर हम कहें कि किसी व्यक्ति ने चीन के क्रांतिकारी लेखक के नाम पर अपने बेटे का नाम रखा हो. हम बात कर रहे हैं लू शुन टोडरिया की, जो उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले हैं. उनके पिता एस राजेन टोडरिया एक लेखक और पत्रकार थे. उन्होंने चीन के क्रांतिकारी लेखक लू शुन के नाम पर उनका नाम रखा था.

लू शुन टोडरिया ने लोकल 18 से बातचीत में कहा कि उनके पिता एक लेखक थे और उन्हें किताबें पढ़ना पसंद था. उन्होंने चीन के महान क्रांतिकारी लेखक लू शुन के बारे में पढ़ा और उनसे प्रेरित होकर मेरा यह नाम रख दिया. हालांकि परिवार वालों को यह नाम पसंद नहीं था क्योंकि उन्हें लगता था कि उत्तराखंड में इस तरह का नाम बच्चा किस तरह बताएगा और इससे दिक्कतें होंगी. उन्होंने कहा कि स्कूल-कॉलेज में दाखिले के वक्त उनके नाम से थोड़ी परेशानी जरूर हुई लेकिन कभी-कभी वह खुद को बहुत अलग महसूस करते थे क्योंकि यह नाम सबके लिए बहुत अलग था. पहले तो लोग उनका नाम सुनकर यकीन नहीं करते हैं और फिर उसके पीछे की कहानी सुनने के लिए उत्सुक होते हैं. लू शुन ने कहा कि बचपन में स्कूल और कॉलोनी में लोग उन्हें लहसुन और उनकी बहन को प्याज कहकर चिढ़ाते थे.

लू शुन नाम सुन चौंक जाते थे साहित्यकार

लू शुन ने बताया कि सबसे अलग नाम पाकर वह लू शुन के किरदार और उनके जीवन को समझना चाहते थे. थोड़ा बहुत उन्होंने अपने पिता से उनके बारे में सुना लेकिन उस वक्त और ज्यादा जानने के लिए किताबें ढूंढ रहे थे. ऑनलाइन किताबें नहीं मिलती थीं, इसलिए उन्हें कई जगह जाना पड़ा. कई साहित्यकारों से मुलाकात की, जो खुद उनका नाम सुनकर चौंक जाते थे. एक साहित्यकार ने उन्हें लू शुन द्वारा लिखित ‘पागल की डायरी’ किताब पढ़ने के लिए कहा. उन्होंने वह किताब पढ़ी और जाना कि किस तरह चीनी तानाशाही सरकार में उन्होंने रूढ़िवादी सोच पर वार करने के लिए व्यंग्यात्मक लेख लिखकर लोगों को जागरूक किया था. उत्तराखंड के लू शुन का सिर्फ नाम ही नहीं उनके व्यवहार में भी चीन के क्रांतिकारी और साहित्यकार लू शुन की झलक नजर आती है. वह भी पहाड़, जंगल व जमीन के लिए लड़ते हैं. कई आंदोलन में रहे हैं. लू शुन उत्तराखंड भर्ती घोटाले के खुलासे की मांग को लेकर आंदोलन करने वाले युवाओं में भी थे, जिन्हें जेल जाना पड़ा था. वहीं चीनी क्रांतिकारी लेखक लू शुन की बात करें, तो उन्होंने भी सामाजिक और साहित्यिक आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पहाड़ के लू शुन बताते हैं कि उनके अनोखे नाम के चलते लोग मानते थे कि वह मजाक कर रहे हैं, तब उन्हें आधार कार्ड दिखाना पड़ता था. वहीं उन्हें अपना नाम कई बार बताना पड़ता है क्योंकि लोगों को एक बार समझ में नहीं आता है.

कौन थे चीनी क्रांतिकारी लेखक लू शुन?

लू शुन चीन में 20वीं सदी के महान लेखक और संपादक थे. उनका जन्म 25 सितंबर 1881 को हुआ था. 19 अक्तूबर 1936 को उन्होंने अंतिम सांस ली. लू शुन ने उस दौर में चल रही रूढ़िवादी परम्पराओं पर तीखे शब्दों और व्यंग्यात्मक लेखों से प्रहार किया. तानाशाही सरकार के खिलाफ वह हमेशा मुखर नजर आए.

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