फूलों-सब्जियों से बने रंग, मंगलदीप स्कूल के दिव्यांग बच्चे बना रहे हर्बल कलर


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Holi 2025: प्रधानाचार्य भारती पांडे ने लोकल 18 को बताया कि मंगलदीप विद्या मंदिर 26 साल से दिव्यांग बच्चों के लिए कार्य कर रहा है. यहां पर बच्चों को छोटे से छोटे कौशल से लेकर व्यावसायिक कौशल तक सिखाया जाता है.

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होली के लिए हर्बल कलर तैयार करते बच्चे.

अल्मोड़ा. होली का त्योहार नजदीक है. हर जगह बाजार सजने लगे हैं. ऐसे में उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के दिव्यांग बच्चों द्वारा होली के लिए हर्बल कलर बनाए जा रहे हैं. अल्मोड़ा के खत्याड़ी में स्थित मंगलदीप विद्या मंदिर में पढ़ने वाले बच्चों को बौद्धिक विकास के साथ उन्हें आजीविका से भी जोड़ने का काम किया जाता है. पिछले 10 साल से यहां पर हर साल होली के मौके पर हर्बल कलर तैयार किया जा रहे हैं. बच्चों द्वारा गेंदे के फूल, गुलाब के फूल, चुकंदर आदि से इन रंगों को तैयार किया जाता है. इसके अलावा इन बच्चों द्वारा अलग-अलग त्योहारों पर उनसे संबंधित चीजें भी तैयार की जाती हैं.

मंगलदीप विद्या मंदिर की प्रधानाचार्य भारती पांडे ने लोकल 18 से बातचीत में कहा कि मंगलदीप विद्या मंदिर पिछले 26 साल से दिव्यांग बच्चों के लिए कार्य कर रहा है. यहां पर दिव्यांग बच्चों को छोटे से छोटे कौशल से लेकर व्यावसायिक कौशल तक सिखाया जाता है. इसमें सिलाई, मोमबत्ती बनाना, हैंडलूम, क्राफ्ट और चॉकलेट बनाने के अलावा त्योहारों के लिए अलग-अलग चीजें बच्चों द्वारा बनाई जाती हैं. होली के मौके पर वे पिछले 10 साल से यहां पर हर्बल कलर तैयार कर रहे हैं.

हर्बल रंगों की काफी डिमांड
उन्होंने आगे कहा कि बाजार में आपको केमिकल वाले कलर देखने को मिलेंगे, जो शरीर के लिए नुकसानदायक होते हैं, पर हमारे बच्चों द्वारा स्कूल में हर्बल कलर तैयार किए जाते हैं. इन रंगों की डिमांड खूब रहती है. इसके साथ-साथ शारदा पब्लिक स्कूल में स्टॉल भी लगाया जाता है, जहां स्कूल में आने वाले लोग इन हर्बल कलर को खरीदते हैं. इनकी कीमत ₹10 से लेकर ₹50 प्रति पैकेट रखी गई है.

रंग बनाने में लगते हैं दो महीने
दिव्यांग छात्र धीरज ने लोकल 18 से कहा कि होली के लिए वे लोग रंग तैयार कर रहे हैं. वे फूलों और पत्तियों को सूखने के लिए रखते हैं, जिसके बाद इन्हें बारीक पीसा जाता है. इस प्रक्रिया में करीब दो महीने लग जाते हैं. फिर रंग बनाने के बाद इसकी पैकिंग की जाती है और मार्केट व अन्य जगहों पर भेजा जाता है.

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फूलों-सब्जियों से बने रंग, मंगलदीप स्कूल के दिव्यांग बच्चे बना रहे हर्बल कलर

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