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Nandprayag Ramleela: उत्तराखंड के नंदप्रयाग में 108 साल पुरानी ऐतिहासिक रामलीला जारी है. सीता स्वयंवर और परशुराम प्रसंग के मंचन ने दर्शकों का दिल जीत लिया.

साल 1917 से अब तक यह रामलीला बिना रुके हर साल होती है.
उत्तराखंड के पहाड़ों में बसा नंदप्रयाग इन दिनों पूरी तरह रामभक्ति में रंगा है. यहां चल रही 108 साल पुरानी रामलीला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और भाईचारे का जीवंत प्रतीक बन चुकी है.

तीसरे दिन का मंचन सीता स्वयंवर पर आधारित था. जनकपुरी का सजाया गया मंच ऐसा लग रहा था जैसे मिथिला खुद पहाड़ों में उतर आई हो. शाम की शुरुआत देवी वंदना से हुई मां दुर्गा की आरती स्थानीय कलाकार श्री दुर्गा सिंह रौतेला ने की. इसी के साथ तीसरे दिन की लीला शुरू हुई.

शिक्षिक बने मुख्य अतिथि
इस बार का आयोजन थोड़ा खास रहा. मंच पर शहर की सभी शिक्षिकाओं को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया. इससे नारी सम्मान और शिक्षा का सुंदर संदेश पूरे समाज तक गया.
मंच पर जब राम और लक्ष्मण जनकपुरी पहुंचे तो जनक बने नगर पंचायत अध्यक्ष पृथ्वी सिंह रौतेला ने उनका स्वागत किया. इसके बाद राजा-महाराजाओं की एंट्री हुई- मज़ाकिया अंदाज, संवाद और मंच की हल्की-फुल्की नोकझोंक ने दर्शकों को खूब हंसाया.

फिर आया वो पल जिसका सबको इंतज़ार था जब भगवान राम ने शिव धनुष तोड़ा और माता सीता का स्वयंवर संपन्न हुआ. जैसे ही धनुष टूटा, पूरा मैदान “जय श्रीराम” के नारों से गूंज उठा.

परशुराम प्रसंग ने जीता सबका दिल
इसके बाद मंच पर परशुराम प्रसंग हुआ. बीएसएफ में तैनात दुर्गा सिंह रौतेला, जो जम्मू-कश्मीर से छुट्टी लेकर पहुंचे थे, ने परशुराम का दमदार किरदार निभाया. उनके और लक्ष्मण बने अभिषेक कठैत के बीच का संवाद इतना जोशीला था कि दर्शकों ने खूब तालियां बजाईं.

नंदप्रयाग की रामलीला की सबसे बड़ी खूबी है इसका भाईचारे का रंग. यहां हर साल मुस्लिम समुदाय के लोग भी मंच पर अलग-अलग किरदार निभाते हैं. यही वजह है कि यह रामलीला धर्म से ज्यादा इंसानियत की मिसाल बन चुकी है. इस परंपरा की शुरुआत साल 1917 में हुई थी और तब से अब तक यह बिना रुके हर साल निभाई जा रही है. आने वाले 26 अक्टूबर को राम के वनवास का मंचन होगा, जिसका इंतज़ार पूरे इलाके को है.

जो लोग नंदप्रयाग नहीं पहुंच सकते, उनके लिए रामलीला का लाइव प्रसारण “नंदप्रयाग सांस्कृतिक मंच” के फेसबुक पेज पर हो रहा है. भक्ति, कला और एकता का ये संगम अब नंदप्रयाग की पहचान बन गया है जहां धर्म और संस्कृति साथ-साथ सांस लेते हैं.

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1917 से अब तक..नंदप्रयाग में 108 सालों से हो रही रामलीला, शिक्षक मुख्य अतिथि

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