Dehradun News : बेसहारा बच्चों के लिए वरदान बना ऑपरेशन मुक्ति, 2100 मासूमों का हुआ नामांकन, जानिए पूरी खबर


रिपोर्ट : हिना आज़मी

देहरादून. सड़क और चौराहों पर भीख मांगने वाले छोटे बच्चे शिक्षा से वंचित रहते है और जिम्मेदारियों के चलते भिक्षावृत्ति के इस दलदल में फंस जाते हैं. उनके भविष्य को बचाने के लिए उत्तराखंड पुलिस ऑपरेशन मुक्ति अभियान चला रही है, जिसमें पुलिस बच्चों को भिक्षा नहीं शिक्षा देने के लिए काम कर रही है. साल 2022 में एक नन्ही बालिका को ऑपरेशन मुक्ति के जरिए भिक्षावृत्ति से निकालकर उसका दाखिला कराया गया. बच्ची की मेहनत और लगन से उसने क्लास में अच्छा प्रदर्शन किया. उत्तराखंड पुलिस ऐसे कई बच्चों की देखभाल अभिभावक बनकर कर रही है.

उत्तराखंड पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने जानकारी देते हुए कहा है कि ट्रैफिक सिग्नल, सड़कों और चौराहों पर छोटे बच्चे अक्सर भीख मांगते दिखाई देते थे, जो बहुत ही दुःखद है . इसलिए उत्तराखंड पुलिस ने दिसंबर 2017 में “ऑपरेशन मुक्ति- भिक्षा नहीं शिक्षा” की शुरुआत की. डीजीपी अशोक कुमार ने जानकारी दी कि साल 2017 से अब तक करीब 2100 बच्चों को भिक्षावृत्ति से निकालकर स्कूल में दाखिला करवाया गया है, जिनमें से 700 बच्चों ने किसी कारणवश ड्रॉप आउट कर दिया जबकि 1400 बच्चे आज भी पढ़ रहे है.

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अचानक आया ऑपरेशन मुक्ति का आईडिया
डीजीपी अशोक कुमार ने बताया कि ऑपरेशन मुक्ति का आईडिया तब आया, जब हमने सिग्नल पर गाड़ी रुकने पर बच्चों को भीख मांगते हुए और गुब्बारे व अन्य चीजें बेचते हुए देखा. उनका कहना है कि छोटे बच्चे जो शिक्षा से वंचित होते हैं और इस तरह के कार्यों में लगे होते हैं. उन्हें इस समाज में शिक्षा देने के लिए इस अभियान की शुरुआत की गई.

बच्चों को न दें भिक्षा
डीजीपी अशोक कुमार ने कहा कि हमने जब रिसर्च की, तो पता चला कि एक बच्चा महीने में तकरीबन 15 हजार रुपये कमा कर अभिभावकों को देता है और अभिभावक भी उन्हें इसके लिए बढ़ावा देते हैं. डीजीपी अशोक कुमार ने जनता से अपील की है कि इन बच्चों को भिक्षा न दें क्योंकि ऐसा करने से इन्हें बढ़ावा मिलता है. इसके साथ ही उन्होंने अपील की है कि कोशिश कीजिए कि हम किस तरह इन्हें शिक्षा के प्रति जागरूक कर सकें और कोई मार्ग दिखा सकें, जिससे वह शिक्षा के मार्ग पर चलें.

बालिका ने किया शानदार प्रदर्शन
उत्तराखंड पुलिस के ऑपरेशन मुक्ति अभियान के तहत साल 2022 में एक बालिका को भिक्षावृत्ति से निकालकर उसका एडमिशन श्रीनगर के एक विद्यालय में कक्षा 5 में करवाया, जिसमें उसने 88.73 प्रतिशत अंक के साथ कक्षा में अच्छा प्रदर्शन किया. शिक्षा में लगे इन नन्हें मासूमों के भविष्य को संवारने के लिए उत्तराखंड पुलिस अभिभावक की तरह काम कर रही है.

उत्तराखंड पुलिस का सराहनीय प्रयास
उत्तराखंड पुलिस की इस अभियान की सराहना करते हुए समाजसेवी ऋतु का कहा कि छोटे बच्चों को देखते हैं, जिनके हाथ में इस उम्र में किताबों की जगह कटोरा होता है. हमें देख कर बहुत बुरा लगता है. उनका कहना है कि उत्तराखंड पुलिस जो अभियान चलाकर इन बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रही है, वह सराहनीय है और पुलिस के साथ-साथ हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम इन बच्चों को शिक्षा की रोशनी में लेकर आएं.

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