Nath of Uttarakhand: उत्तराखंड के पहाड़ी नथ की देश-दुनिया में डिमांड, जानिए इसके पीछे का इतिहास


रिपोर्ट- हिना आज़मी

देहरादून. वैवाहिक और सांस्कृतिक आयोजनों पर उत्तराखंड की महिलाओं की खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करती है नथ. भारत के अलग-अलग राज्यों में नथ के अलग-अलग प्रकार हैं. वहीं उत्तराखंड में गढ़वाली- कुमाऊनी दोनों तरह की नथ को खूब पसंद किया जाता है. पहाड़ की महिलाओं की खूबसूरती की पहचान और संस्कृति की प्रतीक बनी नथ का इतिहास भी सभी को जानना जरूरी है . बताया जाता है कि टिहरी में राजा रजवाड़ों का राज्य था और तभी राजाओं की रानियां सोने की नथ पहनती थी. माना यह भी जाता है कि पुराने वक्त में जब परिवार में मुनाफा होता था तो महिला की नथ का वजन बढ़ाया जाता था.

आज स्टाइलिश और अलग-अलग डिजाइन की मिलने लगी है. सोने चांदी जैसे आभूषणों के साथ-साथ अब आर्टिफिशियल नथ भी बाजार में मिल रही है. देहरादून के स्थानीय निवासी मीना राणा का कहना है कि वह बचपन से ही महिलाओं को नथ पहने देखती आई है. उन्होंने बताया कि शादी विवाह के अलावा पूजन कीर्तन के दौरान भी नथ पहनी जाती है. उन्होंने बताया कि सभी महिलाएं शुभ अवसरों पर अपने पारंपरिक परिधान के साथ-साथ जब नथ पहनते हैं तो बहुत अच्छा लगता है.

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वहीं धमावाला बाजार स्थित काशी ज्वेलर्स के सुनार मोहित मैसोन ने बताया कि उत्तराखंड में महिलाएं विवाह समारोह या उत्सवों पर नथ के साथ-साथ गुलबन्द और पौछि पहनती हैं. उनका कहना है कि देहरादून में ज्यादातर ग्राहक वेडिंग सीजन के दौरान नथ और गढ़वाली ज्वेलरी बनाने के लिए आते हैं. उन्होंने बताया कि वैसे तो उनके पास गढ़वाली और कुमाऊंनी दोनों तरह की नथ है लेकिन उसमें भी कई तरह के डिजाइन उनके पास उपलब्ध है. कई लोग खुद के डिजाइन भी उनसे तैयार करवाते हैं.

मोहित बताते हैं कि भले ही आज कई तरह के जेवर बाजार में उपलब्ध है लेकिन अपने ट्रेडिशनल कल्चर से आज भी लोग जुड़े हुए हैं. गढ़वाली और कुमाऊंनी जेवर में नथ की डिमांड बहुत रहती है.
उन्होंने बताया कि बाजार में सुनारों के पास सबसे ज्यादा डिमांड रहती है टिहरी नथ की. उनके पास टिहरी नथ में कई पैटर्न मिल जाते हैं. इसमें गोल्ड के साथ-साथ स्टोन भी इस्तेमाल होते हैं और कई नथों पर चित्रकारी भी की जाती है. उन्होंने बताया कि वैसे तो कस्टमर अपनी मर्जी से कितने भी तोले की नथ तैयार करवा सकता है, लेकिन ज्यादातर नथ 4 ग्राम सोने से लेकर 15-20 ग्राम के बीच ही लेता है.

पलटन बाजार में आर्टिफिशियल नथ बेचने धर्मराज का कहना है कि आज गांव की महिलाएं ही नहीं बल्कि देहरादून शहर की महिलाएं भी नथ की ओर काफी आकर्षित हो रही है.उन्होंने बताया कि उनकी दुकान से महिलाएं नथ खरीदकर ले जाती हैं. खासकर टिहरी की नथों को ज्यादा पसंद किया जाता है.उन्होंने बताया कि आर्टिफिशियल नथ में दोनों तरह की नथों को खरीदा जाता है.उनके पास 300 रुपये से लेकर 1 हजार रुपये तक की नथ उपलब्ध है.

उत्तराखंड में नथ का इतिहास
भारत की अगर बात करें तो पुराने वक्त से ही महिलाओं के सभी आभूषणों में नथ शामिल थी. आज देशभर में अलग-अलग तरह आभूषण महिलाएं पहनती हैं जिनमें से नथ भी एक है. देशभर में अलग-अलग जगह पर नाक में पहनने वाली नथ,बुलाक और फूली के अलग-अलग प्रकार होते हैं. इस बात के प्रमाण तो नहीं है कि नथ का प्रचलन कब शुरू हुआ लेकिन कुछ किताबों के लेखों से पता चलता है कि अकबर काल में प्रचलन में आई थी और अगर उत्तराखंड की बात की जाए तो कई किताबों में उत्तराखंड के टिहरी जनपद के राजाओं की रानियों के नथ पहनने की बात पता चलती है.

महिलाओं के लिए नथ सुहाग की निशानी मानी जाती है. इसलिए उसे 16 सिंगार में शामिल किया जाता है. पहले पहाड़ की महिलाएं प्रतिदिन उसे सुबह पहनती और रात को उतारती थी. रोजाना इतनी वजनी नथ को पहनकर काम करना उनके लिए मुश्किल होता था, इसीलिए नथ का वजन और साइज छोटा होता गया. आज सिर्फ खास मौकों पर ही महिलाएं नथ पहनती हैं. बताया जाता है कि पहले 5 तोले से लेकर 6 तोले तक की नथ महिलाएं पहनती थी जिस की गोलाई 35 से 40 सेंटीमीटर तक होती थी.बताया यह भी जाता है कि महिलाओं के नथ से ही पता चलता था कि परिवार कितना संपन्न है क्योंकि जब भी परिवार में मुनाफा होता था तो महिला की नथ का वजन बढ़ा दिया जाता था.

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