UK Board 10th Result 2023 : पहाड़ की बेटी ने दिखाया दम, विषम परिस्थितियों में हासिल किए 82 प्रतिशत अंक


सोनिया मिश्रा/चमोली. पहाड़ हो या मैदान प्रतिभा किसी भी चीज की मोहताज नहीं है. और उसकी मिसाल हैं पहाड़ी और दूरस्थ क्षेत्रों के बच्चे. जो पहाड़ की विषम परिस्थितियों के बावजूद मेहनत और लगन से अपना लोहा मनवाने से पीछे नहीं हटते हैं.उन्हीं में से एक छात्रा है प्रभा. जो हर रोज 4 किलोमीटर की दूरी तय कर स्कूल पहुंचती हैं और जिसने बोर्ड परीक्षा में भी स्कूल की टॉप किया है .

चमोली जिले के सीमांत वाण गांव देवाल ब्लॉक का दूरस्थ क्षेत्र है. साढ़े आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस गांव से आगे केवल बुग्याल और बर्फ ही नजर आते हैं. गांव बर्फ से तीन महीने तक ढका रहता है. और बरसात के दिनों में तो 2 माह से पूरी तरह से दुनिया से कट जाता है. यहां लोग लाइट से ज्यादा भरोसा ढेबरी लालटेन( सौर ऊर्जा) पर करते हैं. और उसी के सहारे बच्चे पढ़ाई करते हैं. जिन्हें एक किताब,एक गोली बुखार की, और यहां तक की बाल बनवाने के लिए भी 40 किमी देवाल जाना पड़ता है.

विषम परिस्थितियों में हासिल किया मुकाम
इन विषम परिस्थितियों के बावजूद प्रभा ने 10 वीं की परीक्षा में 82% अंक हासिल करके सभी के लिए मिसाल पेश की है. पहाड़ की इतनी विषम परिस्थितियों के बावजूद सोचिए जब पहाड़ की यह बेटी इतने अंक प्राप्त कर सकती है तो अगर इन्हें अगर देहरादून, हल्द्वानी जैसे शहरों में पढ़ाई का मौका मिलता तो यह और भी कितने अच्छे प्रतिशत हासिल कर उत्तराखंड का नाम रोशन कर सकती है.

प्रिया बिष्ट की मुख्यमंत्री से मांग
प्रिया बिष्ट से उनकी इस सफलता पर बातचीत हुई तो प्रिया की आंखे भर गई . प्रिया कहती हैं कि वो आगे सांइस स्ट्रीम में एडमिशन तो लेना चाहती है लेकिन उनके विद्यालय में विज्ञान वर्ग न होने से वहां के छात्र-छात्राओं को 25 किमी दूर मंदोली अटल आदर्श इंटर कॉलेज में जाना पड़ता है. गांव से हर दिन आना जाना नहीं हो सकता और न ही वहां अलग कमरा लेकर अकेले पढाई की जा सकती है. मैं चाहती हूं कि मैं ही नहीं मेरे गांव की सभी बेटियां इंटर में विज्ञान वर्ग से पढ़ाई करें इसलिए मेरा मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री से निवेदन है कि राजकीय इंटर कॉलेज वाण में विज्ञान संकाय को मंजूरी दी जाय ताकि हिमालय के अंतिम गांव की बेटियों को भी विज्ञान की पढ़ाई करने का अवसर मिल सकें. प्रिया नें बताया की उसकी सफलता में सबसे बड़ा योगदान उसके माता पिता, चाचा और विद्यालय के शिक्षकों का है जिनके बिना ये संभव नहीं था.

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