अन्तरराष्टÑीय महिला दिवस विशेष : महिलाएं यदि ठान ले तो बहुत कुछ कर सकती हैं

बून्दी। कहा गया है कि जब व्यक्ति के दिल और दिमाग की सोच केंद्रित होकर विचार करती हैं तो सेवा का भाव प्रकट होने लगता है, फिर सकारात्मक सोच के साथ आम व्यक्ति भी सेवा के कार्य में जुड़ जाता है। धीरे धीरे यह कारवां बढ़़ता जाता हैं और लोग जुड़ते जाते है। इन सेवा कार्य से मिलने वाली आत्मसंतुष्टि ऐसे सेवाभावी लोगों को प्रतिदिन नई ऊर्जा प्रदान करती है। चाहे वह सेवा किसी प्राणी मात्र की हो, कला की हो या फिर साहित्य की हो। सेवा किसी भी रूप में हो सकती हैं, बस सेवा करने वाला शुद्ध व सात्विक मन से कसारातमक सोच से जुड़ा होना चाहिए। आज महिला दिवस पर आपको ऐसी महिलाओं से रूबरू करवा रहे हैं, जिन्होंने अपने गृहस्थ जीवन को साधते हुए सेवा के इस जज्बें को सार्थक किया। इन्होंने अपने व्यस्ततम समय में से कुछ समय निकाल कर सकारात्मक सोच के साथ सेवा के काय में संलग्न रही। जहां सुमित्रा ओझा अन्नपूर्णा की पर्याय बन क्षुधापीड़ितों की सेवा कर रही हैं, वहीं रेखा शर्मा शिक्षा व साहित्य और ऊषा शर्मा की संगीत की सेवा में शामिल हैं, तो अनुराधा ने तय किया आखर ज्ञान से डिजिटल लर्निंग तक का सफर।

अन्नपूर्णा की पर्याय बनी  सुमित्रा ओझा
ईश्वर जिस व्यक्ति को सेवा के लिए प्रेरित करता हैं, उसके अंतरात्मा में ही सेवा का जज्बा जगाता हैं और वहीं व्यक्ति सेवा के लिए समर्पित भी होता हैं। सेवा की इसी प्रेरणा से जुड़ी हुई हैं, 72 वर्षीय सेवानिवृत व्याख्याता सुमित्रा ओझा। पिछले 22 वर्षों से वह बून्दी शहर के खोजागेट स्थित गणेश मन्दिर परिसर में संचालित श्री गणपति सेवा आश्रम की संरक्षिका बन असहाय, निर्धन, निराश्रित व्यक्तियों को निशुल्क भोजन कराने की सेवा में संलग्न हैं। नौकरी के साथ इस सेवा कार्य में इन्हें कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ा। कहीं बार बच्चों की समस्या सामने अई तो कहीं बार विद्यालय की समस्याऐं, लेकिन इन्होंने अपने सेवा के व्रत को नहीं छोड़ा। वर्ष 2012 में  सेवानिवृति के बाद यह पूरी तरह से इस सेवा कार्य के प्रति समर्पित हो गई। श्री गणपति सेवा आश्रम में हर दिन हर दिन लगभग 50 से 80 असहाय व निर्धन लोग निशुल्क भोजन ग्रहण करते हैं। खासकर इन लोगों में मानसिक विमंदित भी शामिल हैं, जो अपने परिवार के साथ नहीं रहते। इनमें कुछ लोग ऐसे भी हैं जो काफी वृद्ध और असहाय हैं तो उनके लिए खाना टिफिन में पैक किया जाता है। सुमित्रा ओझा ने एक बच्ची को गोद लिया हुआ है, जिसके पिता की मौत हो चुकी है और मां लकवाग्रस्त है।  बच्ची पढ़ाई लिखाई आदि सभी आम जरूरतों का जिम्मा यहीं उठा रही हैं। सुनिया ओझा की इस सेवा व लगन के चलते शहर के दानदाता मी इस पुण्य कार्य में दरियादिली से अपना सहयोग समय समय पर करते रहते है। आज आश्रम के भंडार में 6 माह तक का राशन हर समय उपलब्ध रहता है, जो उनके इस सेवा कार्य की सफलता बयां कर रहा हैं। आज वहां की बेहतर व्यवस्था को देख कई लोग विभिन्न अवसरों जन्मदिन, वैवाहिक वर्षगांठ या पुण्य स्मृति के अवसर पर भोजन करवाने में आर्थिक सहयोग दरियादिली से करते हैं। इसके अतिरिक्त वहां आए लोगों को जरूरत व मौसम अनुसार कपड़े, जूते, चप्पल व अन्य तरह का सहयोग भी किया जा रहा है। श्रीगणपती सेना आश्रय की सेवाओं तथा इनरव्हील बूंदी की अध्यक्ष के रूप में विभिन्न प्रोजेक्ट्स के माध्यम से सेवा कार्य कर चुकी सुमित्रा ओझा को जिला प्रशासन द्वारा गणतंत्र दिवस सम्मान, वुमेन इंस्पायर अवार्ड 2019 सम्मानित किया गया। सेवा के लिए ओझा की सोच है, कि सेवा से बढ़ करकर कोई सुख नहीं होता। प्रेम से बढ़कर कोई प्रार्थना नहीं होती और सहानुभूति बढ़ कर कोई सौन्दर्य कहीं होता।

नौकरी के प्रस्ताव छोड़ की शिक्षा व साहित्य की सेवा
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में जन्मी रेखा शर्मा 1976 में विवाह के बाद अपने पति अनिल शर्मा एडवोकेट के साथ बून्दी आई और तन मन से बून्दी की होकर रह गई। कानपुर के क्राइस्ट चर्च कॉलेज से पढ़ी लिखी रेखा शर्मा की बचपन से ही संगीत, नृत्य, खेल कूद, साहित्य में रुचि रही। इन्होंने एनसीसी कैडेट, इंटरमीडिएट  में खो-खो तथा बैडमिंटन, डिस्कस, जैवलिन, शॉटपुट में मेडल्स प्राप्त किए तो कॉलेज प्रेसीडेंट भी रही और कॉलेज मैगजीन की एडिटर भी रही। इंटरमीडिएट, बीए तथा एमए में कॉलेज टॉपर रही रेखा शर्मा ने बीए में यूनिवर्सिटी में मेरिट लेकर नेशनल स्कॉलरशिप प्राप्त की। विवाह के पश्चात इन्हें बाहर से बाहर से नौकरी के बहुत प्रस्ताव आए, लेकिन बूंदी में गृहस्थ जीवन को सुचारू चलाने की सोच से उन सभी प्रस्तावों को ठुकरा दिया। उस समय बून्दी में शिक्षा की स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी, जितनी आज हैं, विशेष तौर से बालिकाओं की। उच्च शिक्षित बहुमुखी प्रतिभा की धनी रेखा शर्मा ने कुछ अच्छा व कुछ सार्थक करने के विचार से 1986 में लिटिल एंजील शिक्षा समिति की स्थापना कर कड़ी मेहनत तथा निस्वार्थ समर्पण से अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की। रेखा शर्मा को शिक्षा ,संस्कृति तथा सामाजिक क्षेत्र में जिला स्तर पर दो बार सम्मानित ,राज्य स्तर पर शिक्षक रत्न ,समाज कल्याण विभाग जयपुर द्वारा वृद्धजन सम्मान, साहित्य क्षेत्र में नीरज काव्य स्मृति सम्मान ,महादेवी कवियत्री सम्मान ,अमृता प्रीतम मेमोरियल सम्मान ,कल्पना चावला शिक्षक रत्न सम्मान ,राष्ट्र भाषा भूषण सम्मान ,नारी गौरव सम्मान,नारी रत्न सम्मान , हाड़ौती सम्मान ,प्रेमचंद शोध सम्मान , आइडियल इंडियन वूमन सम्मान तथा अन्य अनेक संस्थाओं से अनेकों सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। इनके सफल निर्देशन व नेतृत्व में छात्राएं अंतरराष्ट्रीय किचन जंबूरी में फूड टेबल प्रेजेंटेशन में भारत में प्रथम स्थान पर भी रही हैं। अपने गृहस्थ जीवन को कुशलता से चलाते हुए उन्होंने शहर की बालिकाओं को सर्वगुण संपन्न बनाने की पहल पर निरन्तर चलती रही। यह उस दौर में जब राजस्थान में महिलाओं को घर से बाहर निकलने की मनाई हुआ करती थी, तब न केवल शिक्षा की सेवा में संलग्न रही, साथ ही सभी पारिवारिक दायित्वों को पूरा करते हुए लेखन, समाज सेवा, असहाय शोषित जरूरतमंद वर्ग की सहायता में समर्पित रही हैं। पिछले 45 वर्षो से इनके सफल निर्देशन व नेतृत्व में शहर की कई बालिकाऐं कामयाबी के शिखर तक पहुंची हैं औश्र जिले ही अपितु राज्य राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर तक अपनी छाप छोड़ चुकी हैं।

अनुराधा का रहा आखर ज्ञान से डिजिटल लर्निंग तक का सफर
आज चारों ओर डिजिटल का दौर है, फिर भला शिक्षा विभाग इसमें कैसे पीछे रह सकता था। शिक्षा के क्षेत्र में जब हम प्राथमिक शिक्षा की बात करते हैं, तो सुकोमल अबोध बच्चे व उनकी स्लेट कॉपी का चित्र उभरता है। परंतु यदि प्राथमिक विद्यालय में सभी कक्षाओं के बच्चे स्मार्ट डिजिटल एजुकेशन से जुड़े हुए मिले तो एक स्वप्न सा ही लगता है, ऐसे ही एक स्वप्न को साकार किया बूंदी जिले की नवाचारी शिक्षिका अनुराधा जैन ने। आज से 5 वर्ष पूर्व 2018 में डिजिटल शिक्षा की ओर पहला कदम बढ़ाया और राजकीय प्राथमिक विद्यालय झापड़ी पंचायत समिति हिंडोली जिला बूंदी में 2018 में प्रथम एलईडी लगाई गई। शिक्षिका का उद्देश्य था की अबोध बालक जब पहली बार विद्यालय में कदम रखें तो उन्हें विद्यालय का वातावरण रुचिकर और आनंदमय लगे। नामांकन के साथ ठहराव में भी हो और प्रगति भी हो। जब प्रथम एलईडी जो की भामाशाहों व विद्यालय परिवार के सहयोग से लगाई गई, तो उसके परिणाम सकारात्मक मिलने प्रारंभ हुए। विद्यालय के नामांकन में अत्यधिक वृद्धि हुई, बच्चे गीत कविताओं के माध्यम से अध्ययन में रुचि लेने लगे। तब अध्यापिका ने इसकी उपयोगिता को समझते हुए दूसरी एलईडी भामाशाह  के सहयोग से लगवाई। डिजिटल लर्निंग से बच्चे विद्यालय में बैठे-बैठे ही देश-विदेश की जानकारियां प्राप्त करने लगे अंग्रेजी के उच्चारण में सुधार हुआ। शिक्षिका अनुराधा जैन ने बताया कि सबसे ज्यादा लाभ कोविड़ के समय में मिला जब शिक्षण संस्थाएं बंद थी, परंतु झापड़ी के बच्चों का अध्ययन निर्बाध चलता रहा। अब नन्हें हाथ युटयुब व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से पढ़ाई भी कर रहे हैं और होमवर्क भी कर रहे हैं। डिजिटल लर्निंग के सकारात्मक परिणाम को देखते हुए बच्चों के हित में संपूर्ण विद्यालयों को ही डिजिटल बनाने की ठानी और विद्यालय परिवार तथा मुख्यमंत्री जनसहभागिता से गीत वह भामाशाहों के सहयोग से संपूर्ण विद्यालयों को डिजिटल कर दिखाया अभी हाल में ही दिसंबर माह में एक संस्था के द्वारा पांचवी एलइडी विद्यालय को भेंट की गई इसके साथ-साथ 2018 में देखा गया स्वप्न डिजिटल विद्यालय का 2023 में सरकार हुआ शिक्षिका ने अपने जुनून वी हौसले से प्राथमिक विद्यालयों को राजस्थान के प्रथम पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया बिना किसी सरकारी सुविधा सहयोग के डिजिटल विद्यालय का सपना साकार हुआ।

 

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