देहरादून: आज छोटे बच्चे भी बड़ों की तरह ही मोबाइल में ज्यादा रुचि रखते हैं. वहीं, उनमें रीडिंग हैबिट भी नहीं होती है. बच्चों में पढ़ने की आदत को विकसित करने के लिए और किताबों के प्रति उनमें रुचि पैदा करने के लिए ‘रूम टू रीड’ संस्था काम कर रही है. बच्चों के लिए यह पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाती है, तो वहीं, किशोरावस्था में छात्राओं की काउंसलिंग भी करती है. उत्तराखंड ही नहीं यह संस्था एशिया और अफ्रीका में पिछले दो दशकों से काम कर रही है.
देश के 10 राज्यों में कर रही है काम
‘रूम टू रीड’ की उत्तराखंड की स्टेट हेड पुष्पलता रावत ने लोकल 18 से जानकारी देते हुए कहा कि ‘रूम टू रीड’ संस्था एशिया और अफ्रीका समेत कई देशों में काम कर रही है. हमारे देश में इस संस्था ने राजस्थान से काम करना शुरू किया था, जो आज देश के 10 राज्यों में काम कर रही है. उन्होंने बताया कि हम उत्तराखंड के मैदानी और पहाड़ी इलाकों में सरकार के सहयोग से सरकारी स्कूलों में पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाते हैं, जिससे पहाड़ के बच्चों को किताबें आसानी से मिल पाए और उनमें किताबों के प्रति रुचि पैदा हो पाए.
डिजिटल युग में ‘रूम टू रीड’ सफल
पुष्पलता रावत ने बताया कि डिजिटल युग के दौर में भी ‘रूम टू रीड’ संस्था बच्चों के साथ जुड़कर काम कर रही है. कोविड काल में जब लोग अपने घरों में कैद हो गए थे. तब भी ‘रूम टू रीड’ संस्था ने बच्चों में पुस्तकों के प्रति रुचि जगाने का काम कर रहा था. यह डिजिटल माध्यम से भी बच्चों को कुछ पुस्तकें उपलब्ध करवाते हैं. इसके अलावा बाल साहित्यकारों को भी प्रमोट करने के लिए वह पुरस्कारों से नवाजते हैं. आप उससे जुड़ने के लिए www.roomtoread.org पर पर जा सकते हैं.
परिवार से सीखी जाती है रीडिंग हैबिट
पुष्पलता रावत ने कहा कि किसी भी बच्चे की प्रथम पाठशाला उसका परिवार होता है. जहां से वह बहुत कुछ सीखता है. कई बार हम बच्चों को पढ़ने के लिए तो कहते हैं, लेकिन हम खुद मोबाइल फोन में लगे होते हैं. इसीलिए सबसे पहले हमें खुद पढ़ना होगा. बच्चा हमें किताबें पढ़ते देखेगा तो उसमें भी किताबें पढ़ने के लिए रुचि पैदा होगी.
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FIRST PUBLISHED : August 6, 2024, 17:08 IST