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शहीद दिवस: देहरादून के तिलक रोड पर बनाए गए बाल वनिता आश्रम में वर्तमान में लगभग 50 बच्चे रहते हैं, जिन्हें स्कूलों में शिक्षा दी जाती है और जो बच्चे आगे पढ़ना चाहते हैं, उन्हें इंटरमीडिएट के बाद पढ़ाया भी जाता …और पढ़ें
आश्रम का उद्घाटन करने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 16 अक्टूबर 1926 को देहरादून आए थे.
देहरादून. 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि को शहीद दिवस पर रूप में मनाया जाता है. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी उनसे जुड़ी निशानी है और वह है तिलक रोड पर स्थित श्री श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम. आर्य समाज ने साल 1920 के दशक में बेसहारा-अनाथ बच्चों को सहारा देने की पहल की थी. देहरादून के रईस सेठ मुकुंद हरिहर लाल ने करीब साढ़े चार बीघा जमीन दान दी थी. जिसके बाद यहां आश्रम बनाया गया. इसका नाम स्वामी श्रद्धानंद के नाम पर श्री श्रद्धानंद बाल वनिता आश्रम रखा गया. इस आश्रम का उद्घाटन करने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 16 अक्टूबर 1926 को देहरादून पहुंचे थे.
श्री श्रद्धानंद बाल वनिता आश्रम के प्रधान सुधीर गुलाटी ने लोकल 18 को जानकारी देते हुए कहा कि आर्य समाज मंदिर के एक कमरे में दो बच्चों के साथ यह अनाथालय शुरु किया गया था. उनके पास जमीन नहीं थी, देहरादून के सेठ मुकुंद हरिहर लाल ने लगभग साढ़े चार बीघा जमीन दान दी थी. 17 फरवरी 1924 को आर्य समाज से जुड़े लोगों की बैठक हुई, जिसमें यह फैसला लिया गया था कि ऐसे बच्चे जिनके सिर से माता-पिता का साया उठ गया है या किसी अन्य तरह से पीड़ित बच्चे हैं, उन्हें आत्मनिर्भर और शिक्षित करने के लिए एक अनाथालय की स्थापना की जाए. सेठ मुकंद हरिलाल लाल से जमीन मिलने के बाद एक अच्छे मुहूर्त पर भूमि पूजन करते हुए इसकी आधारशिला रखी गई. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी उन दिनों उत्तराखंड के दौरे पर थे. जनांदोलन के लिए वह देहरादून में भी आए थे. आजाद भारत का सपना लिए लोगों को एकजुट करने वाले बापू के हाथों इसका उद्घाटन होना बहुत विशेष था. उन्होंने बताया कि श्री श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम का उद्घाटन करने लिए महात्मा गांधी 16 अक्टूबर 1926 को देहरादून आए थे.
आश्रम में 60 बच्चों के रहने की क्षमता
देहरादून के तिलक रोड पर बनाए गए इस अनाथ आश्रम में लगभग 50 बच्चे रहते हैं, जिन्हें स्कूलों में शिक्षा दी जाती है और जो बच्चे आगे पढ़ना चाहते हैं, उन्हें इंटरमीडिएट के बाद पढ़ाया भी जाता है और उनकी शादी भी की जाती है. उन्होंने बताया कि वर्तमान में बाल वनिता आश्रम में 60 बच्चों के रहनी की क्षमता है. यहां बच्चों के लालन-पालन के साथ-साथ उन्हें कई तरह के क्रियाकलापों में शामिल करवाया जाता है, जिससे उनका कौशल विकास भी हो सके. सुबह बच्चे स्कूल चले जाते हैं और स्कूल से लौटने के बाद उन्हें ट्यूशन भी पढ़ाया जाता है. शाम के समय सभी बच्चे साथ मिलकर प्रार्थना करते हैं. बच्चों के पढ़ने के लिए किताबें, ड्रेस आदि की व्यवस्था आश्रम ही करता है. इसके अलावा कुछ लोग समय-समय पर राशन और जरूरी सामान बच्चों को दान करते हैं. उन्होंने आगे कहा कि बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए आश्रम में कई तरह की सुविधाएं हैं. बच्चों में साहित्य और रीडिंग के प्रति रुचि पैदा करने के लिए यहां पुस्तकालय संचालित किया जाता है. इसी के साथ ही प्रैक्टिकली अच्छी तरह से समझाने के लिए उन्हें प्रोजेक्टर के जरिए भी पढ़ाया जाता है. बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर यहां सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं. इस आश्रम से बिन मां-बाप के बच्चों को छत मिल पाई. वहीं उन्हें बापू की अवधारणा पर अहिंसा और देश प्रेम जगाने के लिए प्रेरित भी किया जाता है.
गौरतलब है कि देश की आजादी में महात्मा गांधी के योगदान को हमेशा याद किया जाता है. उत्तराखंड में आजादी की लड़ाई के दौरान राष्ट्रपिता देहरादून समेत उत्तराखंड के कई जिलों में आए थे. राज्य में आज भी उनकी कई निशानियां मौजूद हैं. श्री श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम में बतौर उनकी निशानी करनी और थाली भी है, जिससे उन्होंने सीमेंट डाला था. वह आज भी आश्रम में रखी हुई है, जो चांदी की है.
Dehradun,Uttarakhand
January 28, 2025, 22:53 IST
देहरादून के इस आश्रम का महात्मा गांधी ने किया था उद्घाटन, आज भी रखी है निशानी